Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 49
________________ वर्ष ३, किरण १०] तामिल भाषाका जैनसाहित्य वार्षिक उत्सव मनाये जाते हैं । यह बात आदि-जैनों ध्यानपूर्वक देखता था, कि 'विंग' (Whigs) लोगोंको के विषयमें तामिल विद्वानोंके दृष्टि कोणको समझने में उससे अधिक लाभ न हो । जबकि तामिल विद्वानोंकी सहायक होगी। इससे यह बात स्पष्ट है, कि वे इस साधारण मनोवृत्ति इस प्रकारकी हो, जब वैज्ञानिक एवं सूचना मात्रका विरोध करते हैं, कि महान् नीतिशास्त्र ऐतिहासिक शोधकी यथार्थ भावना शैशवमें हो, तब जैन विद्वानके द्वारा रचित होगा। यह कोई श्राश्चर्यकी बात नहीं है, कि तामिल साहित्य एक परम्पराके आधार पर इस ग्रंथके लेखक कोई नामकी कोई अर्थवान वस्तु हमारे पास न हो । अतः तिरुवल्लुवर कहे जाते हैं । तिरुवल्लुवरके सम्बन्धकी हम जैनसाहित्यके ऐतिहासिक वर्णनको पेश करने के काल्पनिक कथाके घटक अाधुनिक लेखकोंकी कल्पनाके प्रयत्नमें असमर्थ हो जाते हैं। द्वारा जो बताया गया है। उससे अधिक उसके सम्बन्ध इस विषयान्तर बातको छोड़कर ग्रंथका परीक्षण में अज्ञात है । तिरुवल्लुवरकी जीवनीके सम्बन्धमें अनेक करते हुए हमें स्वयं पुस्तक में आई हुई कुछ उपयोगी मिथ्या बातें बताई गई हैं, यथा वह चाण्डालीका पुत्र बातें बतानी हैं । इस पुस्तकमें तीन महान् विषय हैं । था । सभी तामिल लेखकोंका समकालीन एवं बन्धु था। (अरम् ) (धर्म) पोरुल (अर्थ,) इनबम् इस बातका कथनमात्र इसके मिथ्यापनेको घोषित (काम) ये तीनों विषय विस्तारके साथ इस प्रकार समकरता है । किन्तु अाधुनिक अधिक उत्साही तामिल झाये गये हैं, जिसके ये मूलभूत अहिंसा सिद्धान्तके विद्वानोंने उसे ईश्वरीय मस्तक तक ऊँचा उठाया साथ सम्बद्ध रहें। अतः ये संज्ञाएँ साधारणतया हिन्दू है, उसके नाम पर मंदिर बनाएँ हैं तथा ऐसे वार्षिक धर्मके ग्रन्थोंमें वर्णित संज्ञाओंसे थोड़ी भिन्न हैं, इस उत्सवोंका मनाना प्रारंभ किया है, जैसे हिन्दू देवताओं विषय पर ज़ोर देनेकी आवश्यकता नहीं है । हिन्दू धर्म के सम्बन्धमें मनाए जाते हैं । इसका लेखक एक हिन्दू की बादकी धार्मिक पद्धतियोंमें वेद विहित पशुवलिकी देवता समझा जाता है, और यह रचना उस देवता क्रिया पूर्णरुपेण पृथक नहीं की जासकी कारण वे द्वारा प्रकाशित समझी जाती है । साधारणतया इस वैदिक धर्म-सम्बन्धी क्रियाकाण्ड पर अवलंवित हैं, प्रकारके क्षेत्रों में ऐतिहासिक अालोचनाके सिद्धान्तोंका इसलिये धर्म शब्दका अर्थ उनके यहां वर्णाश्रम धर्म प्रयोग कोई नहीं सोचेगा । यह बात तो यहाँ तक है, ही होगा, जिसका अाधार वैदिक बलिदान होगा । जैन, कि जब कभी ग्रन्थ के प्रमेयके सूक्ष्म परीक्षणके फलस्व- बौद्ध तथा सांख्यदर्शन नामक तीन भारतीय धर्म ही रूप कोई बात सुझाई जाती है, तब वह धार्मिक जोश. वैदिक बलिदानके विरुद्ध थे। पुनरुद्धार के काल में इन पर्ण तीब्रताके साथ निषिद्ध की जाती है । अनेक श्रा- तीन दर्शनोंके प्रतिनिधि पूर्व तामिल देशमें विद्यमान थे। लोचक नामधारी व्यक्ति, जिन्होंने इस महान् रचनाके ग्रंथके आदिमें ग्रंथकार 'धर्म' के अध्यायमें अपना मत सम्बन्धमें थोड़ा बहुत लिखा है, इस प्रकारकी विचित्र इस प्रकार व्यक्त करते हैं, कि सहस्रों यज्ञोंके करनेकी बौद्धिक स्थिति रखनेमें सावधान रहे हैं जिस प्रकार अपेक्षा किसी प्राणीका वध न करना और उसे भक्षण 'सेमुअल जानसन' 'हाउस आफ कामन्स' की कार्यवाही न करना अधिक अच्छा और श्रेयस्कर है। यह एक ही को लिखते समय सावधान रहा था। वह इस बातको पद्य इस बातको बतानेको पर्याप्त है कि लेखक कभी भी

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