Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 47
________________ वर्ष ३, किरण १० ] ( ४ ) नच्चीना किंनियर ( ५ ) कल्लादरेकी लिखी हुई हैं इनमें से प्रथम लेखक सब टीकाकारों में प्राचीन है । पश्चात्वर्ती लेखकोंने श्रामतौर पर 'टीका कार' के नाम से उसका उल्लेख किया है । परम्परा के अनुसार यह तामिल भाषाके व्याकरणका महान् ग्रन्थ द्वितीय संगम कालका कहा जाता है । हमें विदित है कि विद्यमान सब ही तामिल ग्रन्थ अंतिम तथा तृतीय संगम् कालके कहे जाते हैं । अतः इस टोलकाप्पियम्को करीब २ संपूर्ण उपलब्ध तामिल साहित्यका पूर्ववर्ती मानना चाहिये । तामिल भाषाका जैनसाहित्य इस परंपराको स्वीकार करना आश्चर्यकी बात होगी, क्योंकि यह संभव नहीं है कि किसी भाषाके अन्य ग्रन्थोंके पूर्वमें उसका व्याकरण शास्त्र हो । वास्तव में व्याकरण तो भाषाका एक विज्ञान है, जिसमें साहित्यिक रिवाज ग्रंथित किए जाते हैं; इसलिये वह उस भाषा में महान् साहित्य के अस्तित्वको बताता है । तामिल वैयाकरण भी इस बातको स्वीकार करते हैं । वे पहिले साहित्यको और बाद में व्याकरणको बताते हैं 1 इसलिये यदि हम इस परंपराको स्वीकार करते हैं कि टोलकापियम् संगमकालका मध्यवर्ती है तब हमें उसके पूर्व में विद्यमान् महान् साहित्यकी कल्पना करनी पड़ेगी, जो किसी कारणसे अब पूर्ण लुप्त हो गया । यदि हम द्रविड़ सभ्यताकी पूर्व अवस्था पर विचार करें, तो इस प्रकारकी कल्पना बिल्कुल असंभव नहीं होगी । अशोक समयके लगभग तामिल प्रदेश में चेरचोल और पांड्य नाम के तीन विशाल साम्राज्य थे । अशोक इन साम्राज्योंकी विजयका कोई उल्लेख नहीं करता है । अशोक के साम्राज्य के आस पास ये मित्र राज्योंकी सूची में बताए गये हैं । इतिहास के विद्यार्थी इन बातोंसे भली भाँति परिचित हैं, कि तामिल देशमें बहुत सुन्दर १६६ बंदरगाह है, यहाँके लोग मूमध्यसागर के आसपास के यूरोपियन राष्ट्रोंके साथ समुन्नत सामुद्रिक व्यापार करते थे, तामिल भाषाने वैदेशिक शब्द भंडारको महत्वपूर्ण शब्द प्रदान किये थे, और तामिल देशके अनेक स्थानों में उपलब्ध रोमन देशीय स्वर्ण मुद्राएं रोमन साम्राज्य से सम्बन्धको सूचित करती हैं। इसके साथ में मोहन जोदरो, हरप्पाकी हालकी खुदाई और खोज आयकी पूर्ववर्ती सभ्यताको बताती है और हमें उस उच्च कोटिकी सभ्यताका ज्ञान कराती है, जो श्रादिद्रविड़ लोगोंने प्राप्त की थी। जब तक हम इस श्रादिद्रविड संस्कृति के पुनर्गठन के सम्बन्ध में उचित साक्षी नहीं प्राप्त करलें, तब तक तो ये सब बातें कल्पना ही रहेंगी । उपलब्ध तामिल साहित्य बहुधा तृतीय संगम कालका है, अतः अनेक ग्रन्थ, जिनके सम्बन्धमें हमें विचार करना है, इस काल के होने चाहियें । यह समय प्रायः ईसा से दो शताब्दी पूर्व से लेकर सातवीं सदी तक होगा। चूंकि संगम या एकेडेमी एक संदेहापत्र वस्तु है इसीलिये संगम शब्द तामिलोंके इतिहास के काल विशेष को द्योतित करने के लिए एक प्रचलित शब्द है । श्रीयुत शिवराज पिल्लेके द्वारा सूचित तामिल साहित्य के प्राकृतिक, नैतिक और धार्मिक ऐसे तीन सुगम काल भेद माने जा सकते हैं, क्योंकि ये व्यापकरूपसे तामिल साहित्यकी उन्नति द्योतक हैं । कुरल और नालदियार जैसे नीति ग्रन्थोंके उत्तरवर्तीसाहित्य में बड़ी स्वतंत्रता के साथ अवतरण दिए गए | अतः यह मानना एकदम मिथ्या नहीं होगा, कि काव्य साहित्यकी अपेक्षा नैतिक साहित्य पूर्ववर्ती प्रतीत होता है । इस नैतिक साहित्य समूह में जैनाचार्योंका प्रभाव विशेषरीति से विदित होता है । कुरल और नालदियार नामके दो महान ग्रंथ उन

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