Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 27
________________ वर्ष ३, किरण १० ] विषय में विशेष जानने वालोंमे मेरी प्रार्थना है कि वे इस संबन्धमें विशेष तर्क-वितर्क करके यथार्थ बातका निश्चय करें । नृपतु का मतविचार सबसे पहिले राष्ट्रकूट वंशका संक्षिप्त परिचय दिये बिना तथा श्री जिनसेनाचार्य और उनका समय निर्णय के संबन्ध में थोड़ा-बहुत कहे बिना आगे चलने पर समझने में दिक्कत पड़ेगी । श्रतः इन दोनों विषयोंको पहिले कह कर पश्चात् इस लेखक मुख्यांश पर विचार किया जाना चाहिये । राष्ट्रकूटवंश इस वंश के बहुत से राजाओं के शामनोंसे सबसे पहिले 'गोविन्द' नामक नरेश हुआ यह बात मालूम पड़ने पर भी, 'एलूर-गुफा ( Caves दन्तिवर्म ३ इन्द्र [1 ४ दन्तिदुर्ग ( दन्तिवर्म, दन्तिग खङ्गावलोक, वैरमेघ) of Ellora ) के 'दशावतार देवालय' के एक शिलालेख में गोविन्द के पूर्वज 'दन्तिवर्म तथा 'इन्द्रराज' इन दोनों का नाम रहने से * तथा प्राचीन लेखमालाके लेख नं० ६, ९, १३३, और १५६ में कही हुई वंशावली में भी उनके नाम रहने से उस दन्तिवर्म से ही वंशावलीका दिखाना योग्य समझकर वैसा किया गया है। चूंकि इनमें से तीसरे 'गोविन्द' नामक नरेशने ( ई० सन्. ७९४-८१४ ) 'मही' और 'तापी' ( तापती ) के मध्यवर्ती 'लाट' ( या 'लाल' अर्थात् गुजरात ) देशको वहाँके राजासे जीतकर उसे अपने छोटे भाई (तृतीय) ‘इन्द्र' को दे दिया और उसे वहाँका राजा नियुक्त कर दिया। इससे यह विभक्त होकर इसकी प्रधान शाखा 'दक्षिण- राष्ट्रकूटवंश' नामसे और गौण शाखा 'गुजरात-राष्ट्रकूट' नाम से प्रसिद्ध हुई । ( प्रा० ले० मा० नं० २ ) इन्द्र I १ गोविन्द 1 २ कर्क (कक्क) 1 E. H. D. Pg. 47. + वाढीयं मंडलं यस्पतन इव निजस्वामि (निजभ्रात्रा ) दत्तं ररस में ( प्रा० ले० मा० नं० ४ ) भ्राता तु तस्य (गोविन्दस्य ) ....."इन्दराजः । शास्ता बभूवाद्भुतकीर्तिसूतिस्तद्दत्तला टेश्वरमंडलस्य ॥ ५ कृष्ण I (कन्नर ) अकालवर्ष, शुभतुंग ३७३

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