Book Title: Anekant 1940 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 26
________________ नृपतुंगका मतविचार [ लेखक - श्री एम. गोविन्द पै ] [ इस लेख के लेखक श्री एम. गोविन्द पै मद्रास प्रान्तीय दक्षिणकनाड़ा जिलान्तर्गत मंजेश्वर नगरके एक प्रसिद्ध विद्वान् हैं। आप कनड़ी, संस्कृत तथा अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओंके पंडित हैं और पुरातत्त्व विषयके प्रेमी होनेके साथ-साथ अच्छे रिसर्च स्कॉलर हैं । जैनग्रन्थोंका भी आपने fait अध्ययन किया है । 'अनेकान्त' पत्रके आप बड़े ही प्रेमी पाठक रहे हैं। एक बार इसके विषय में आपने अपने महत्वके हृदयोद्गार संस्कृत पद्योंमें लिखकर भेजे थे, जिन्हें प्रथम वर्ष के अनेकान्तकी पूर्वी किरण में प्रकट किया गया था। आपके गवेषणापूर्ण लेख अक्सर अंग्रेजी तथा कनड़ी जैसी भाषाओंके पत्रों में निकला करते हैं। यह लेख भी मूलतः कनड़ी भाषामें ही लिखा गया है और आजसे कोई बारह वर्ष पहले वेंगलरकी 'कर्णाटक-साहित्य परिषत्पत्रिका' में प्रकाशित हुआ था । लेखक महाशयने उक्त पत्रिका में मुद्रित लेखकी एक कापी मुझे भेट की थी और मैंने मा० वर्द्धमान हेगडेसे उसका हिन्दी अनुवाद कराया था । अनुवाद में कुछ त्रुटियां रहनेके कारण बादको प्रोफेसर ए. एन. उपाध्याय एम. ए. सहयोगसे उनका संशोधन किया गया । इस तरह पर यह अनुवाद प्रस्तुत हुआ, जिसे 'अनेकान्त' के दूसरे वर्ष में ही पाठकों के सामने रख देनेका मेरा विचार था; परन्तु अबतक इसके लिये अवसर न मिल सका । अतः आज इसे अनेकान्तके पाठकोंकी सेवामें उपस्थित किया जाता है । इस लेख में विद्वानों के लिये कितनी ही विचारकी सामग्री भरी हुई है और अनेक विवादापन विषय उपस्थित किये गये हैं; जैसे कि नृपतुंग नामक प्रथम अमोघवर्ष राजाका मत क्या था ? वह जिनसेनादिके द्वारा जैनी हुआ या कि नहीं ? राज्य छोड़ कर उसने जिनदीक्षा ली या कि नहीं ? और प्रश्नोतररत्नमाला जैसे ग्रंथ उसीके रचे हुए हैं या किसी अन्यके ? विचारके लिये विषय भी अच्छे तथा रोचक हैं। आशा है इतिहासके प्रेमी सभी विद्वान् इस लेख पर विचार करनेका कष्ट उठाएँगे और अपने विचारको - चाहे वह अनुकूल हो या प्रतिकूल —युक्ति के साथ प्रकट करनेकी ज़रूर कृपा करेंगे, जिससे लेखके मूल विषय पर अधिक प्रकाश पड़ सके और वस्तु स्थितिका ठीक निर्णय हो सके । जैन विद्वानोंको इस ओर और भी अधिकता के साथ ध्यान देना चाहिये । - सम्पादक ] पतुंग, अमोघवर्ष, इत्यादि अनेक उपाधियों अथवा प्रकार बहुत से विद्वानोंकी राय है । परन्तु इस विचारसे निर्बल मालूम पड़ते हैं। मैं अपने आक्षेपोंको सबके सामने रखता हूँ और इस वंशज नरेश दिगम्बर जैनाचार्य श्री जिनसेनसूरि से जैन धर्मका उपदेश पाकर जैनी होगया, इस

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