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अनेकान्त
[ श्रावण, वीर निर्वाण सं० २४६६
उपाधि मालूम पड़ती है । ( शब्दमणिदर्पण Mangalore १८९९ पृ० १७१ )
इन नामों के सिवाय इसे 'नरलोकचन्द्र' (क० म० । २३) 'नीतिनिरन्तर ' ( 11 ९१ ) ( कृतकृत्य मल्ल ) वल्लभ' ( 1६१ ) 'विजयप्रभूत' ( I. १४९, II १५३, III २३६, 'सरस्वतीतीर्थावतार' III २२५ ) और 'प्रन्थान्त्य गद्य ऐसी उपाधियाँ थी, ऐसा मालम पड़ता है ।
ही नहीं किन्तु इसी उपाधियुक्त इस वंश के उभय शाखाओं के अन्य नरेशोंके सदृश इसको भी 'कर्क' (कक्क) ऐसा नाम होगा । (कर्क) यानी श्वेताश्व ( 'कर्क: श्वेताश्वे " -- ) या 'श्वेत ' ऐसा अर्थ है । उसका उपाधि अन्तर्गत 'अतिशय धवल' यह नाम भले प्रकार दिखाई देनेसे हमारा यह ऊहापोह निराधार नहीं है ।
इस नृपतुंग (अमोघवर्ष) के और भी अनेक नाम या उपाधियाँ थीं, यह बात कर्नाटक 'कविराजमार्ग' से तथा इसके शासन से भी मालूम पड़ती है :
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(१) शर्व - - ई० सन् ६७ के शासन में . ( प्रा०ले० मा० नं० ४ )
श्रीमहाराजशर्वाख्यः ख्यातो राजाभवद्गुणैः । अर्थिषु यथार्थतां यः समभीष्टफलातिलब्ध तोषेषु ॥ वृद्धिं निवाय परमाम मोघवर्षाभिधानस्य ॥ (२) नृपतुंग --- कविराजमार्ग I ४४, १४६; II. ४२, ९८, १०५; III ९८, १०७, २०७, २१९, २३० और प्राचीन लेखमाला लेख नं० १३३ और १५६ आदि ।
* प्रा० ले० मा० नं० ४, ५, ७८ और I. A Vol XII. pp. 158, 181, 218.
(३) अमोघवर्ष - - कविराज मार्ग III १, २१७ आदि ।
दूसरी पंक्ति में 'कम् + अलंकृतम्' इस प्रकार सन्धि कर लेना चाहिये । ('कं + शीर्षे' हेमचन्द्र का 'अनेकाथ(४) अतिशयधवल -- क० मा० I. ५, २४, संग्रह' ५ कम् = तले' ) इस प्रकार के अनेक पद्य संस्कृत १४७ II. २७, ५३, १५१; III ११, १०६ ।
में हैं। माघ कविके 'शिशुपालवध' काव्य के १६ समें बहुत से हैं । उदाहरणार्थ
तस्यावदानैः समरे सहसा रोमहर्षिभिः । सुरैरशंसि ग्योमस्यैः सह सारो महर्षिभिः ॥ ११ ॥ + प्रा० ले०मा० नं०६ और IA Vol. XII P. 249
प्रा० ले० मा० नं०8 और I. A., P. 264.
(५) वीरनारायण - क० मा० I १०२, III १८० | इसके नीचे दिये जाने वाले इसके समय के एक शासन में इसे 'कीर्तिनारायण' ऐसा कहा है ।
शब्दमणिदर्पण में उद्धृत कन्द पद्य में कहा गया नृपतुंग यही होगा तो उसे वहां 'केय्दु वोत्तरदेव' ऐसा कहा जानेसे वह एक उसकी
इस वंशके नरेशोंके शासनों में देवतास्तुति सम्बन्धी अत्रतारिकापद्य इस प्रकार हैं-(१) सवोव्याद्वेधसा धाम बन्नाभिकमलं कृतम् । हरश्च यस्थ कान्तेदुकलया कमलंकृतम् #11 यह हरिहर - स्तुति-सम्बन्धी श्लोक है; यह श्लोक ही इनके बहुतसे शासनों में मिलता है( २ ) जयन्ति ब्राह्मणः सर्गनिष्पत्तिमुदितात्मनः ।
सरस्वती कृतानन्दा मधुराः सामगीतयः ॥ ( ३ ) श्री सरस्वत्युमा भारवल्ली संश्लेषभूषितम् । भूतये भवतां भूयादजकल्पतरुत्रत्रम् ॥