Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 2 Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 9
________________ आ संस्थाना प्रथम पुस्तकना संपादक तरीके पण आचार्यदेव 'श्रीआनन्ददसागरसूरीश्वरजी म० हता अने बीजा सेंकडानी शरुआतना प्रथम पुस्तक तरीके पण तेओश्रीनो संकलित अमूल्य कोषनो भाग १ सं० २०१२ मां प्रसिद्ध थयो. कोषनी विशिष्टता अंगे संपादकश्रीओ पहेला भागनां निवेदनमा लख्युं छे. अमारी संस्थाए आना प्रकाशनमा वधारे रस लीधो तेनुं मुख्य कारण ए छे, के आज सुधी छपायेला प्राकृत कोषोमां अभिधानराजेन्द्रकोष, पाइयसहमहण्णवो आदि केटलाक कोषो छे पण तेमां न्यूनाधिकरूपे विचार करतां उपयोगितामा बाध आवे छे-जेमके अभिधानराजेन्द्रकोष प्रमाणमां एटलो बधो मोटो ले के तेमाथी कोई शब्द शोधवा माटे वधारे परिश्रम पडे अने छपाईमां के सम्पादनमा त्रुटी रहेवाने लीधे सूत्रो अने ते ते प्रकरणो घणा परिश्रम पछी पण जडतां नथी. पाइयसद्दमहण्णवोमां जैनसैद्धान्तिक शब्दो उपर वधारे भार मूक्यो होय तेम जणातुं नथी. पण प्रस्तुत ग्रन्थमां कोई पण जैन के जैनेतर विद्वान् प्रचलित जैन पारिभाषिक शब्दोनो यथार्थ परिचय ढूंकमां ते शब्दना स्थल सहित सहेलाईथी प्राप्त करी शके एवी तक छे, तथा मुनिराजो पण ग्रन्थ सम्पादनना कार्योमा सहायता लई शके तेम पण छे. __ अमे इच्छीए छीए के आ प्रकाशननो विद्वज्जनो योग्य आदर करशे ज. आ कोषने अंगे संज्ञाओनी समजणो तथा ते ते ग्रन्थोनां पानाओनी सूची पण संपादक पू. महाराजोए आपी छे. प्रस्तावना संजोगवशात् अत्यारे आपी शक्यो नथी पण त्रीजा के चोथा भागमां आपशं. महाराज श्रीअभयसागरजी महाराजने लखवा माटे आमन्त्रण आप्युं छे. अमारा प्रकाशन कार्यमा जे जे महाशयोए अमने मदद करी छे ते ते महाशयोना अमे ऋणी छीए. वि०सं०२०२० लि० भवदीय द्वि० कार्तिक (क्षयमागसर) सुद १४ मोतीचंद मगनभाई चोकसी ता. १७-११-१९६३ ) वगेरे ट्रस्टीओ १ तेओश्रीनो सुरत उपर तो अनहद उपकार छे. तेओश्रीने संवत १९७४ना वैशाख सुद १०ना सुरतमां ज 'आचार्य' पदवी अपाई हती. श्रीजनानन्दपुस्तकालय, श्रीवर्धमानजनताम्रपत्रागममंदिर वगेरे सूरतमा ज छे. अने सं० २००६ ना वैशाख वद ५ मे 'स्वर्गवास' पण सुरतमा ज थयो छे. तेओश्रीनो अग्निसंस्कार पण सुरत शहेरनी मध्यवर्ती गोपीपूरामां आगममंदिरना सामे जूनी अदालतथी ओळखाती जमीनमा थयो हतो. वळो ते ज जग्या उपर गुरुदेवश्रीना स्मरण तरीके संपूर्ण इतिहासने जणावनारु 'श्रीआगमोद्धारकगुरुमंदिर' बंधाववामां आव्यु छे. तेओश्रीनु मुख्य कार्यक्षेत्र सुरत ज राहतु. तेनी प्रतिक तरीके अनेक ज्ञान पिपासानी संस्थाओ स्थपाई हती. (१) शेठदेवचंद्र-लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारफंड, (२) शेठनगीनभाई मंछुभाई जैन साहित्योद्धार फंड. (३) भी रत्नसागरजीजैनमिडलस्कूल ( विद्याशाला ) कायमी फंड, (४) श्रीजेनतत्त्वबोधपाठशाला वगेरे अनेक संस्थाओ तेओना उपदेशनुज परिणाम छे. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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