Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 1
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 15
________________ आ अ. लै. श. मां भिन्न भिन्न शब्दो व्याकरणना प्रयोगो रूपे, कोई तेवां नामो रूपे, कोई इतिहास तरीके, कोई भूगोळ तरीके तथा कोई पर्यायो तरीके पण आव्या छे. काचो खरडो-शरूआतमां लहियो एकेक आगम लईने कापलीमा ते शब्दने ऊतारतो अने टीकाकारनो बतावेल अर्थ लक्ष्यमां आवे तो ते अर्थ लखतो. आवी रीते ऊतारेली छूटी कापलीओने प. पू. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीना विनयगुणसंपन्न, तीक्ष्णबुद्धि, स्वर्गस्थ मुनिराज श्रीमहेन्द्रसागरजीए अकारादि क्रममां गोठवी कागलमा सलंग चोटाडीने तैयार करी ते उपरथी ए लखाण लहिया आदि द्वारा लखावीने तेमज तेओश्रीए (श्रीमहेन्द्रसागरजीए) पोते पण लखीने काचो खरडो तैयार कर्यो. प्रकाशननी तैयारी-आ अ. सै. श. ने छपाववानी प. ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीनी घणी इच्छा हती. तेथी लगभग त्रण दशका उपर सदगृहस्थो पासेथी अ. सै. श. ना प्रकाशनने अंगे रूपिया शेठ देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धारकफंडने अपाव्या हता. ते पछी वि. सं. २०७४ मां ते संस्थाए आ अ. सै श. छपावत्रा माटे ठराव कर्यो. आथी मुद्रणालयपुस्तिका करवानुं कार्य पू स्व. मुनिश्री महेन्द्रसागरजीना शिष्य मुनिश्रीसौभाग्यसागरजीने (तेओश्रीना लघुबन्धुने) सोंपायुं. तेथी तेओ दरेक आगमना ते ते पत्रमा ते ते शब्दो मेळवता अने तेना अर्थाने पण मेळवता. तेमज ज्यां टीकाकारना शब्दो लेवाना हता त्यां प. ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्री पासेथी तेना मूळ शब्दो बनोवी लेता अने जे शब्दोना अर्थ टीकाकारे न आप्या होय तेना अर्थो पण पूछी लेता. आवी रीते तेमणे लगभग बार फार्म सुधीनु मेटर तैयार कर्यु. ___उपर जणावेली संस्था (दे +ला.)ना ट्रस्टीओओ प ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीनी जीवन पर्यंत सेवा करनार मुनिराज श्रीगुणसागरजी महाराज पासेथी आ कोपीनुं लखाण मेळयुं अने छपाववा माटे प्रबंध कर्यो. तेमज अमने संपादन माटे विज्ञप्ति करी. तेथी अमे शरू कयु. साथोसाथ मेटर पण तैयार करवा मांडयुं. ___ संपादन पद्धति-दरेके दरेक शब्द ते ते आगमनी साथे मेळवयो अने तेमां जणावेल अर्थ मेळवी लेवो. ते रीते कार्य करतां केटलाक आगमोना अंगे शब्दोना प्रश्नो ऊभा थया. तेमां श्रीव्यवहारसूत्रना त्रीजा उद्देशाना शब्दो हता पण ते सिवायना बाकीना उद्देशाना शब्दो न हता. तेथी प. ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीए व्यवहारनी आखी प्रतमां निशानो करी आप्यां. आथी तेनी कापलीओ उतारी तेना शब्दोनो उमेरो कर्यो. आगळ जतां बीजा पण आगमोना शब्दो नथी एम देखायुं, तेनी तपास करतां-नंदी, अंतगड, अगुत्तरोवाइय, उपासकदसा, रायपसेणीय, अने निरयावलिना शब्दो न हता. तेथी तेना शब्दो पण उतार्या. अने ते शब्दो धीरे धीरे मेळववामां आव्या. आगळ चालतां नायाधम्मकहाना शब्दो बिलकुल नथी एम मालम पडयु. नायाधम्मकहानी प्रत तो प. ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीनी निशानवाळी प्राप्त न थई, तेमज जे समये शब्दो नथी तेवी शंका थईते समये तो अमारु पण्य पण न हतं के प गरुदेवश्री विद्यमान है अमे अमारी मंदमति अनुसारे आ आगमनी सटीक प्रतमां निशानो का, शब्दो तारव्या अने ते तारवेला शब्दोने कोशमां स्थान आप्यं - आ अ. से. श. मां अग्यार अंग, बार उपांग, त्रण (बृहत्कल्प, व्यवहार अने निशीथ) छेदसूत्र, चार मूल, ओधनियुक्ति, विशेषावश्यक, नंदी, अनुयोगद्वार, अने दशवैकालिकचूर्णिना शब्दोनो संग्रह ७. विस्तारथी चूर्णि वगेरे जेना पर नथी तेपा जीत कल्प, पंचकल्ल, दशाश्रुतस्कंध, अने महानिशीथना शब्दो लीधा नथी HA Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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