________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आगमसार.
जीव छे, एहवो एकाग्रतारूप ध्यान ते अपायविचयधर्मध्यान जाणवो.
३ विपाकविचय धर्मध्यान कहे छे. जे एहवो जीव छे तोपण कर्मवशे दुःखी छे ते कर्मनो विषाक चिंतवे जे जीवनो ज्ञानगुण ते ज्ञानावरणीय कर्मे दाब्यो छे अने दर्शनावरणीय कर्मे दर्शनगुण दाब्यो छे, एम आठ कर्मे जीवना आठ गुण दाब्या छे एटले आ संसारमा भमतां थकां जीवने जे सुखदुःख छ ते सर्व कर्मनां कीधां छे. माटे सुख उपने राचवू नही अने दुःख उपने दिलगीर थर्बु नही. कर्म स्वरूपनी प्रकृति, स्थिति, रस, अने प्रदेशनो बंध, उदय, उदीरणा, तथा सत्ता, चितवन एकाग्रता परिणाम ते विपाकविचय
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only