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२४४ गुणस्थानकविचार. आवरणपणे हणे नहि, हणावे नहि, हणता अनुमोघे नहीं, तथा बीजे महावते, सव्वाओ मोसा वायाओ वेरमणं. द्रव्यत क्रोधे माने मायाए लोभे सक्ष्मवादर लौकिक तथा लोकोत्तर जूटुं पोते बोले नही बोलावे नहि बोलता अनुमोद्ये नहि मन बचन कायाए करी, भावथी सर्व द्रव्य पर्यायनो यथार्थ जाणवो, सत्य भासनरूप ज्ञायकता शक्ति साधि ज्ञान सत्यपणे पाले तथा श्री वीतरागना आगम प्रमाणे अर्थ भाव छे तेहनी सझाय करे जेहथी पोताना ज्ञानदर्शन चारित्र निर्मल थाये ते भाषा वोले. त्रीजी महावत सव्वाओ अदिनादाणाओ वेरमणं" जे द्रव्य ते प्रणतुस मात्र पण अण दीधो ले। नहीं, लेबरावे
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