Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 430
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता १५१ गुरु कहे - कोई जीव शुभाशुभ परिणामे करी पुण्य पाप रूप आश्रवना दलीया बांधे तेहने अजीव कहिये. एटले ए चार नय मे ए छ तत्त्व जाणवा ॥ ४ ॥ वली शिष्य कहे - शब्द नयने मते करी तत्वनो स्वरूप केम जाणिये ? त्यारे गुरु कहे - शब्द नयने मते चोथे गुणस्थाने समकिती जीव, पांचवे गुणस्थाने देशविरती जीव, छठे सातवें गुणस्थाने सर्वविरती जीव, अन्तरंग सत्तागत ना भासन रूप संवर भाव में वर्तता समय २ महा निर्जरा प्रते करे छे ||५| वली शिष्य कहे - समभिरूढ नयने मते करी तaat स्वरूप किम जाणिये ? त्यारे तत्व गुरु कहे जे ए नयना मतवालो श्रेणी भावने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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