Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 437
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सत्ताये लागा छे, ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो २ अने द्रव्यपुण्य कहतां उदय भाव न जोगे व्यवहार नयने मते ते दलीयानो उदय थयो ते भव शरीर आश्रय उदय भाव रूप द्रव्य पुण्य जाणवी . अने भाव पुण्य कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन, कायाये करी व्यवहार नयने मते ऊपर थकी पुण्य रूप दलीयानो भोगवणो ते भाव रूप पुण्य जाणवो. हिवे पुण्य रूप करणीनो करवो, ते ऊपर निक्षेपा लगावे छे. एटले नाम पुण्य कहतां पुण्य एहवो नाम ते नैगम नयने मते त्रणेकाल एक रूप पणे वर्ते छे १. अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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