Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 451
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ अध्यात्मगीता. शुभाशुभ फलनो भोक्ता जाणवो अने अजीव कहतां पांचद्रव्य + चेतनारहित अजीवरूप जड़स्वभाव (ते) न जाणे सुखने, न जाणे दुःखने. त्यारे शिष्य कहे-ए तो सामान्य प्रकारे अर्थ कह्यो पिण विशेष रीते स्वपरनी वेहचणरूप जीवनो स्वरूप किम जाणिये ? त्यारे गुरू कहे-एगोहं. एटले एगोहं कहता हुं एक छ, म्हारो कोई नथी १. सासियो अप्पा. एटले सासियो अप्पा कहतां म्हारो जीव शाश्वतो छ २. नाण दंशण संयुक्तो. एटले नाण दंशण संयुक्तो कहता हूं ज्ञान दर्शणे करीने सहित - - IYum mentRMONT + धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्तिकाय २ आकाशास्तिकाय ३ पुद्गलास्तिकाय ४ ओर काल ५. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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