Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१९६
अध्यात्मगीता. साय । देवचंद्र निज हर्षे गायो आतमराय ॥ ४८॥
अर्थ:-एटले श्रुतअभ्यासी कहतां श्रुत ज्ञानने अभ्यासे करीने यथार्थ स्वसत्ता, परसत्ताना भासन रूप उपदेश करतां; अने चौमासी वासी लींबड़ी ठाम. एटले लीबड़ी ग्रामने विषे चौमासो प्रते वसीने ए ग्रंथनी रचना प्रते करी. एटले लींबड़ी ग्राम केहयो छ ? तोके, शासनरागी सोभागी श्रावकना बहु धाम. एटले शासनरागी कहतां जिनशासन ना रागी, जिनशासनना उद्योत ना करणहार, जिनशासननी उन्नति कहतां महिमाना वधारणहार, एहवा सोभागी सिरदार,
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