Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७ यथार्थ भासन रूप आत्मउपयोगी व्यबहार क्रिया रूप आचारना प्रतिपालक, जिनशासन दीपावक, देव गुरु भक्तिकारक, एहवा श्रावक पुण्य प्रभावक, ज्ञानचरचारक एहवा श्रावकना बहु कहतां घणा, अने धाम कहतां वसवाना घर प्रते जाणवा. श्री खरतर - गच्छ पाठक श्री दीपचंद सुपसाय. एटले खरतर गच्छ मध्ये उपाध्याय श्रीदीपचंद गुरुने पसाय कहता प्रसादे करीने; देवचंद्र निज हर्षे गायो आत्मराय. एटले तेहनो शिष्य देवचन्द्र मुनीये, निज कहतां पोताने हर्षे करीने, गायो कहतां संस्तव्यो, अने आत्मराय कहतां आत्मराजानो यथार्थ पणे आत्मिक स्वरूप प्रर्ते वखाण्यो ॥ ४८ ॥ www.kobatirth.org अध्यात्मगीता. For Private And Personal Use Only

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