Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 474
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १९५ वत् तिहां साधुपंथ जाणवा. तेणे गीतार्थ चरण रहीज. एटले तेण कहतां ते कारण माटे गीतार्थ मुनि के चरणे रहिजे. अन एहवा गीतार्थ मुनिना चरण कमण सेवा थकी श्यूं नीपजे ? नो के. शुद्ध सिद्धांत रस तो लहिजे एटले शुद्ध कहतां निर्मल यथार्थ निःसंदेह पण सिद्धान्त कहतां एहवा आगम संबंधी या ज्ञान रस प्रते चारखीजे. अने वली ए मुनि केहवा छे ? ।। ४७ ॥ श्रुत अभ्यासी चोमासी वासी लीबड़ी ठाम । शासनरागो सौभागी श्रावकना बहु धाम ॥ खरतर गच्छ पाठक श्री दीपचंद सुप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 472 473 474 475 476 477 478 479 480