Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 464
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १८५ सदा काल न्यारो वर्त छं. जेम डंकने संयोगे स्फटिकने कलंक लागे पिण मूल स्वभावे जोतांतो स्फटिक शुद्ध निर्मलो छे, तेम हुँ म्हारे स्वभावे निर्लेप रह्यो वर्तु छ ६७. अलख. एटले अलख कहतां म्हारो स्वरूप छद्मस्तने लख्या मे न आवे ६८. __अशोक. एटले अशोक कहता हुं जन्म, जरा, मरण भय रूप शोक संताप सुं रहित सदा काल निरोगी, अमर रूप वर्ने छु ६९. अलोक. एटले अलोक कहता हुं लौकिक मार्ग सुं रहित, म्हारो खेल न्यारो वर्ते छे ७०. ___लोकालोकज्ञायक.एटले लोकालोकज्ञायक कहता हूं ज्ञाने करीने लोकालोकनो स्वरूप एक समयमे जाणवा सामर्थवान् छु ७१. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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