Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 465
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ अध्यात्मगीता. शुद्ध एटले निर्मल, कर्मरूप मलमुं रहित छु ७२. चिदानंद एटले चिद् कहता ज्ञान अने नंद कहतां आनंद चारित्र रूप तेणे करीने हुँ सहित वर्तुं छु एहवो म्हारो स्वरूप सदा काल शाश्वतो छ. ७३. एहवी रीते,एम वेहचण करतांथाये लाभ सदैव. एटले-थाये लाभ सदैव कहतां एहवी रीते अंतरंग भासन रूप वेहचण करतां थका ते जीवने सदैव कहतां सदा काल निरंतरपणे लाभ प्रते नीपजे. एटले एहवी रीते सदा काल लाभ प्रते केम नीपजे ? तोके निश्चने व्यवहारे विचरे जे मुनिराय. एटले निश्चेने व्यवहारे कहतां जीव अजीव रूप षट् द्रव्य नव तत्वनो स्वरूप निश्चय ब्यवहार नये www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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