Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 466
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १८७ जाणपणा रूप अंतरंग प्रतीत करवी, ते थकी लाभ मते नीपजे. त्यारे शिष्य कहे - निश्चय व्यवहार नये जीव अजीव रूप षट् द्रव्य नव तत्वनो स्वरूम किम जाणिये ? त्यारे गुरु कहे — निश्चय नय करी सर्व जीव सत्ताये एक रूप सरीखा सिद्धसमान शाश्वता छे; अने व्यवहार नये करी जीवनी अनेक भांति देवता, नारकी, तिर्यच, मनुष्य रूप जाणवी अने कोई जीव शुभ परिणामे करी पुण्य रूप आश्रवना दलीया बांधे तेहने अजीव कहिये ५. ते निश्चय नये करी छोड़वा योग्य अने व्यवहार नये करी आदरवा योग्य. बली कोई जीव अशुभ परिणामे करी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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