Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्यात्मगीता.
ग्रहे छे, माटे नवमा दशमा गुणस्थानथी मांडी यावत् तेरमां चौदमा गुणस्थान पर्यंत केवली भगवान पिण संवरभावमे वर्तता महानिरी प्रतें करे छे ८ तेहने भव शरीर आश्रये द्रव्य मोक्ष पद कहिये ॥ ६॥ ॥ ९॥
अने एवंभूत नयने मते सकल कर्म क्षयकरी लोकने अंते विराजमान सादिअनंतमे भागे वर्त्तता एहवा सिद्ध परमात्मा तेहने भाव मोक्ष पद कहिये ॥ ७ ॥ ९ ॥ एणी रीते साते नये करी तत्वनो स्वरूप जाणवो. . हिवे नामादि ४ निक्षेपे करी षट् द्रव्यनो स्वरूप ओलखावे छे. एटले नामजीव कहतां नैगम नयने मते गये काले जीवतो हतो आगामी काले जीवसे अने वर्तमान काळे
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480