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अध्यात्मगीता.
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मोह रूप पुर कहेतां जे नगर, तेहनें भेदवाने जिनवाणी केही छे ? के वज्रपाणि कहेतां इंद्र समान जाणवी. एटले जिम वज्रे करीने इंद्र असुरादिकना नगर ते विदारे तिम, sai जिनेश्वर देवनी वाणी रूप वज्रे करी सित्तेर कोडाकोड मोहनी कर्म रूप स्थिति छे तेहने विदारी, एक कोडाकोडिनी मांहिली पासे आणी मेले, ए परमार्थ. एटले वली जिनवाणी केहवी छै ? के गहन भमफेद छेदन कृपाणी. एटले गहन कहेतां जे आकरी, एहवी भवरूप कंद कहेतां जे अटवी, छेदवा ने जिनवाणी केहवी छे ? के कौवाड़ी समान जाणवी ॥ १ ॥
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