Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१३६ अध्यात्मगीता. ते मुनि, अने असंगी कहतां तेहनी बंछा रूप. संगथकी रहित न्यारा प्रते वर्ते छे. ते मुनि शुद्ध परमार्थ रंगी. एटले ते मुनिराज शुद्ध कहेता निर्मल बुद्धिना धणी, अने परमार्थ कहतां साध्य एक साधन अनेक, एणी रीते सत्तागतना धर्मने साधे. एहवी रीते परम कहतां उत्कृष्टो अर्थ साधवाने रंगी कहता जेहनो चित्त प्रतें रंगाणो छे. अने एहवी रीते चित्त प्रतें रंगाणो त्यारे ? ॥ ४३ ॥
चाल:स्थाद्वाद आत्मसत्ता रुचि समकित तेह । आत्मधर्मनो भासन निर्मल ज्ञानी जेह । आत्मरमणी चरणी
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