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अध्यात्मगीता.
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इंति तद्वित शरीर आश्रये द्रव्य जाणवो || ३|| अने भावथकी सिद्धनो स्वरूप कहत सामर्थ पर्याय प्रवर्त्तना रूप अनन्तो धर्म प्रगट्यो छे; तेणे करीने सदा काल नव मवाज्ञेयनी वर्त्तना रूप पर्य्यायनो उत्पात व्यय समय समय अनन्त अनन्तो होय रह्यो छे, तेणे करीने सिद्ध परमात्मा अनंतो सुख भो गवे छे ॥ ४ ॥
एणी रीते ए चार निक्षेपे करीने सिद्ध परमात्मा रत्तो कहतां सदा काल तेहने विषे रक्त प्रवर्ते छे अने पूर्णानंद कहतां एहवी रीते सम्पूर्ण आत्मिक सुखनो आनंद प्रतें भोगवे छे. केवल नांणी जाणे तेहना गुणनो छन्द. एटले केवल नांणी कहतां केवली
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