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अध्यात्मगीता.
प्रदेशे कर्म रूप प्रकृति वलगी कहता लागी छे, ते अव्यापक थको खेरवे तेह अलगी. एटले अव्यापक थको कहतां अलिप्त पणे न्यारो रही जे कर्म रूप प्रकृति उदय आवे ते भोगवीने खेरवे. एणी रीते अलगी कहतां दूरे करीने आत्म गुण निरावर्ण प्रते करे. त्यारे शिष्य कहे-आत्म गुण केम निरावर्ण प्रते करे ? ॥ ३३ ॥
चाल:धर्म ध्यान इकतानमें ध्यावै अरिहा सिद्धाते परिणतथी प्रगटी तात्विक सहज समृद्धि ॥ स्व स्वरूप एकत्वै तन्मय गुण पर्याय । ध्यानै ध्याता
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