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अध्यात्मगीता. १२३ अर्यः-कर्ता कारण कार्य निज परिणामिक भाव. एटले कर्त्ता ते सिद्धनो जीव अने कारण कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण प्रते कारण रूप नीपना छे, अने कार्य कहतां ते गुणम रमण करवा रूप कार्य जाणवो. अने निज परिणामिक भाव. एटले निज कहतां पोतानो, अने परिणामिक भाव कहतां नैगम, संग्रह नयनें मते जीवनी सत्ताये परिणामिक भाव रह्यो हतो तेहवो जे एवंभूत नयनें मते सिद्धि रूप कार्य प्रतें नीपनो तेहने विष वर्ने छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ ? तो के, ज्ञाता ज्ञायक भोग्य भोक्ता शुद्ध स्वभाव. एटले ज्ञाता कहतां ज्ञाने करीने, अने ज्ञायक कहतां अनेक ज्ञेय पदार्थ प्रते
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