Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 05
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ 184 जैनगीता / सूरौ वाचक सत्तपोऽसहशिशुवाते कुले सद्गणे, सधे साधुमनोज्ञयोरुरु सदाऽऽधीयेत वैयावृतिम् / यत्रत्यः प्रतिपातवर्जिततर्नु स्वात्मश्रियः कामुकैः , आत्मा० // 10 // योषाणां निलये न वासमुचितां वार्ता करोतीह यः,.. सेवेतासनमिन्द्रियाणि दमयेत् कुड्यान्तरो न भवेत् / क्रीडां न स्मरतीद्धमुज्झति रसं शोभा न काये सृजेत, // 11 // यावज्जीवमविश्रमं दधदिह ज्ञानादिरत्नत्रयं, द्वौ भेदौ तपसः स्वषट्कसहितौ क्रोधादिवृन्दोज्झनम् / सप्तत्याव्यमिदं हि चारुचरणं यत्राप्यते सर्वत, आत्मा० / / 12 / / आहारे वसतौ पतद्धृतौ वस्त्रे च शुद्धयर्थितामीर्याद्याः समितीश्च पञ्च दशयुक् ते भावने द्वे कृतौ / .. भिक्षणां प्रतिमाः सदेन्द्रियजयं वखाद्यवेक्षां गुपीः, आत्मा० // 13 // आबाल्यादपि दीक्षणं भवभिदे कर्मानलाम्बूपमं, यावद्दीक्षणकार्ययोग्यमसमं सामर्थ्य मिष्टं तनौ / वर्णानां न भिदा न चाश्रमक्रमोऽन्येष्टोऽत्रधर्मेशिवे, आत्मा० // 14 // नैवाऽत्र क्षितिकर्षणं पशुगणो नैवात्र पाल्यो मतो, व्यापारोऽपि समग्रपापनिलयस्त्याज्यो मतः सर्वथा / आरम्भात् सपरिग्रहाद्विरमणं त्रैधं त्रिधाऽत्राहते, आत्मा० // 15 / / यावत्स्थाम शरीरजं मतिमुखान् शक्तो गुणानेधितुं, निःसङ्गोऽत्र भुवस्तले नवविधं कल्पं समाराधयन् / / धर्मोद्योतपरोऽघसन्ततिभिदे कुर्याद्विहारं मुनिः , आत्मा० // 16 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247