Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 05
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 203
________________ 196 जैनगीता। संसारे भ्रमता कृता बहुविधाः संयोगसार्थाः परं, प्राप्ता दुःखपरम्परा प्रतिभवं जीवेन कर्मार्जनात् / ज्ञानाढयं निजमेक्ष्य जीवमधुना सवा त्यजामि त्रिधा, आ० // 9 // संयुक्तं भववारिधावसुमतां जातं न कैर्वस्तुभिस्तत्सर्वं स्थितमेवमेव न पदं जीवानुगं प्रेत्य हा ! तन्मे शाश्वतरूपमेक्ष्य रुचितं ज्ञानादिरूपं शुभ-. मात्मा० // 93 // ये केचिनिजकर्मपाशपतिता भ्राम्यन्ति लोकेऽसवस्ते सर्वे क्षमयन्तु मेऽमतिकृतं निःशेषमागःपथि / स्थित्वाऽहं क्षमयामि वैरमधुना त्रिध्यं त्रिधा यत्रगः, आ० // 14 // प्राम्जन्मार्जितपुण्यभारसहितं भुञ्जन् जिनावं त्वयं, गर्भ जन्मनि दीक्षणेऽन्त्यवि दि च प्राप्तौ शिवस्यालिले।... विश्वे सातमुदीरयन् शिवषथोद्देश्यत्र मेऽस्तु प्रभुः, आत्मा० // 95 / / यैरष्टादशदोषसन्ततिरलं प्रोद्वेष्टिताऽऽत्माश्रयात् , . . प्राप्त केवलमुज्ज्वलं सुरपतिवातेन पूज्याः सदा / मोक्षान्ता कथितार्थशुद्धविभूतिः सङ्घाय तैर्नाथता, आ० // 960 कृत्वाऽनादित आत्मनि श्रितमिह कर्मेन्धनं भस्मसादासाद्याव्ययबोधसौख्यबलदां शक्तिं स्वरूपात्मिकाम् / सिद्धास्ते जगदुत्तमाः शरणदा माङ्गल्यकाराः सदा, आत्मा० // 97 // सोपाध्यायमुनीश्वरा गणिवरा मोक्षार्थमाप्तुं यताः, .. साहाय्यं भविवित्त (चीर्ण) धर्मविधिषु प्रत्यक्षमाविभ्रते / श्रेष्ठत्वं शरणं च मङ्गलविधिं चाहन्ति तेभ्यो नमः , आत्मा० // 9850 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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