Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 05
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 212
________________ '205 आगमोद्धारककृतिसन्दोहे नयति नौस्तटमम्बुधिपारगं, प्रवरपण्यभरं फलमश्नुते / कि ननु च नाविक उत्तमतां, तथा, ननु लभन्त इहागमतो जिनाः // 42 / / लेखा रेखां विदन्तो ननु जिनपमहात् पूजयन्तीह शास्त्रं, पूजां धत्ते च शास्ता प्रमुख इह भुवो देशनायाः प्रकामम् / सङ्घस्याप्तागमान् यद्धरति सुनिपुणं सर्वकालं यतोऽसौ, नीतिं लोकान् ददर्शाऽतनुमहिमभुवं पूज्यपूजाङ्कितां ताम् // 43 / / जगत्पतित्वमहतां मतं जिनेन्द्रशासने, न मन्यतेऽमुना यतः परस्परं विरोधभाक् / ... त्रिकालगं जगन्न तु प्रभुप्रभावभावनं, 11.... सदागमाः सनातना जिनास्तदुपदेशकाः . // 44 / कथं मायाद्विश्वे जिनप ! तव यशो दिक्षु दशसु, दधौ जन्मान्त्यं यत् प्रवरनृपगृहे सत्कुलगतः / गतोऽप्यन्ते मोक्षं न च तव विशेषो जगति नु, त्वदुक्तो यन्नित्यं तनुत आङ्गो महपदम् // 45 // सदागमाः सदा जनेषु धर्मभावबन्धुरा, जिनाः सदैव सान्तरा निरन्तरा इमे पुनः। परं न शुद्धशब्दमात्ररूपधारका अमी, : सदर्थरूपतां परां दधत आर्षरूपतः // 46 / / अतीतकाल आहती सदागमावलीमिमा मवापुराहताः पदं सदात्मशुद्धिजं परम् / श्रिता विशुद्धिमार्गतो विहाय संसृतिं परां, सुभाविनोऽपि तद्वदेव कीर्तिराहेती स.का // 4 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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