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प्रकाशकीय:
_ 'आगम-युग का जैन-दर्शन' यह एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है । प्रस्तुत पुस्तक के लेखक हैं, पण्डित श्री दलसुख मालवणिया। जैनदर्शन पर हिन्दी में अनेक पुस्तुकें उपलब्ध हैं, किन्तु प्रस्तुत पुस्तक की अपनी विशेषता है । यह पुस्तक आगमों के मूल दार्शनिक तत्त्वों पर लिखी गई है । मूल आगमों में प्रमाण, प्रमेय, निक्षेप और नय आदि पर क्या-क्या विचार हैं और उनका विकास किस प्रकार हुआ, इन सबका क्रमिक विकास प्रस्तुत पुस्तक में उपनिबद्ध किया गया है । जो अध्येता एवं पाठक दार्शनिक दृष्टि से आगमों का अध्ययन करना चाहते हैं, उनके लिए प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। इस पुस्तक के अध्ययन करने से मूल आगम ग्रन्थों के दार्शनिक तत्त्वों का एक अच्छा परिबोध हो जाता है।
पण्डित श्री दलसुख जी अपने लेखन कार्य में और अनुसंधान में अत्यन्त ध्यस्त थे, फिर भी उन्होंने हमारे आग्रह को स्वीकार किया और अपने व्यस्त समय में से कुछ समय निकाल कर प्रस्तुत पुस्तक को तैयार करके, उन्होंने तत्त्व-जिज्ञासुओं पर एक बड़ा उपकार किया है । एतदर्थ मैं पण्डित जी को धन्यवाद देता हूँ, कि उन्होंने जैन साहित्य को एक अमूल्य कृति भेंट की है।
प्रस्तुत पुस्तक का मुद्रण, एजुकेशनल प्रेस आगरा में हुआ है। प्रेस के संचालक और प्रबन्धक महोदयों ने प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में जिस धीरता और उदारता का परिचय दिया है, इसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ, क्योंकि प्रस्तुत पुस्तक में संस्कृत और प्राकृत के टिप्पण इतने अधिक हैं, जिससे Compositer का परेशान होना स्वाभाविक था, किन्तु इस कठिन कार्य को प्रेस की ओर से बड़े धैर्य और सुन्दरता के साथ सम्पन्न किया गया है । इसके लिए मैं बाबू जगदीश प्रसाद को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ।
सोनाराम जैन
मन्त्री सन्मति ज्ञानपीठ
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