Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 7
________________ पूर्व स्वर आगम-सम्पदा अध्यात्म-पुरुषों की अभिव्यक्त अस्मिता है। युग-युग के मनीपी-चिन्तन आगमों में संकलित एवं संरक्षित हैं। धर्म एवं दर्शन तो इनकी आधार-भूमिका है, किन्तु जन-संस्कृति आगमों में जिस ढंग से आत्मसार हुई है, वह बेमिसाल है। आगम प्राचीन है, किन्तु वर्तमान के द्वार पर सदैव उसका स्वागत होता रहेगा। आगमों की रचना हुए कई शतक बीत गये, परन्तु ऐतिहासिक सन्दर्भो की अगवानी के लिए हमारी दस्तक युग-युग की देहरी पर है। 'समवाय-सुत्तं' मात्र आगम ही नहीं, अपितु इतिहास का एक बड़ा दस्तावेज भी है। इसमें हमारा प्राचीन गौरव और इतिहास सुरक्षित हुआ है । 'समवाय-सुत्त' आगम-क्रम में चौथा अंग-आगम होते हुए भी आगमों की समग्रता का प्रतिनिधि-ग्रन्थ है। आगम-सूत्रों का यह प्रास्ताविक भी है और उपसंहार भी। एक प्रकार से यह संग्रह-ग्रन्थ है, सन्दर्भ-कोष है, विज्ञप्ति-विधान है। इसके दस्तावेज में ऐसे अनेक सूत्र इन्द्राज हुए हैं, जिनसे अतीत के मोटे परदे उघड़ते हैं। कोष-शैली एवं संख्यात्मक तथ्य-प्रस्तुति 'स-सु' के व्यक्तित्व की पारदर्शिता है। ग्रन्थ का प्रारम्भ एकत्ववाची तथ्यों से हुआ है, पर समापन अनन्त की गोद में । इतिहास किलकारियां भर रहा है, तथ्य अंगड़ाईयाँ ले रहे है, 'स-सु' के वर्तमान धरातल पर। यह वह समृद्ध-कोष है, जिससे कई वैज्ञानिक सम्भावनाएं जन्म ले सकती हैं। यदि सृजन-धर्मी अनुशीलन किया जाए, तो अतीत की यह थाती वर्तमान के लिए विस्मयकारी रोशनी की धार साबित हो सकती है। भौतिकी, जैविकी एवं भौगोलिकी को उघाड़ने/निहारने के लिए 'स-सु' की वैज्ञानिकता एवं उपयोगिता विवाद-मुक्त है । जल, थल, नम की मोटी-मोटी परतों का 'स-सु' ने आखिर कितना बारीकी से उद्घाटन किया है। ऋषि-मुनि कहलाने वाले वैरागी लोगों

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