Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 18
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ९ धर्मस्वरूपनिरूपणम् दिभिः क्रियाविशेषे जीवोपमर्दकारिणः एतेषां सर्वेषामेव जीवविराधकानां वैरमेव वर्धते इति उत्तरसूत्र क्रिया ॥ २ ॥ मूलम् - परिरंगहनिविद्वाणं वेरं तेर्सि वडूई । आरंभसंभिया कामा न ते दुक्खविमोयगा ॥३॥ छाया - परिग्रहनिविष्टानां वैरं तेषां मवर्द्धते । आरम्भसंभृताः कामा न ते दुःखविमोचकाः ||३ | अन्वयार्थः - (परिग्गहनित्रिणं तेर्सि वेरं पवडूड) परिग्रहनिविष्टानां तेषां वैरं प्रवर्द्धते, परिग्रहो धनधान्यादिषु ममत्वम्, तत्र निविष्टानामध्युपपन्नानां वैरं शुत्रभावः पापं वा वर्द्धते - वृद्धिमुपयाति (आरंभिया कामा) आरम्भसंभृताः कामाः - कामिनः - विषयलोलुपास्ते आरम्भैः सम्यग्रभृता:- आरम्भपुष्टाः इत्थंहिंसकों के वैरकी वृद्धि होती है। वैरकी वृद्धि होती है, इसका संबंध अगले सूत्र के साथ है ॥२॥ 'परिग्गहनिविद्वाणं' इत्यादि । शब्दार्थ - 'परिग्गहनिविद्वाणं तेसिं वेरं पवडूइ - परिग्रहनिविष्ठानां तेषां वैरं प्रवर्द्धते' परिग्रहमें आसक्त रहनेवाले इन प्राणियोंका दूसरे प्राणियों के साथ वैर बढता है 'आरंभसंभिया कामा- आरंभ संभृताः कामा' वे विषयलोलुप जीव आरंभसे भरे हुए है 'ते न दुक्ख विमोगा- ते न दुक्खविमोचकाः' अतः वे दुःखरूप आठ प्रकार के कर्मों को छोडने वाले नहीं है ||३|| अन्वयार्थ - जो परिग्रह में आसक्त हैं, उनके बैर की वृद्धि ही છે. આ બધા હિંસા કરનારાના વેરની વૃદ્ધિ થતી રહે છે. વેરની વૃદ્ધિ થાય છે, આ કથનના સમધ આગલા સૂત્ર સાથે છે. રા 'परिग्गह निविद्वाणं' हत्याहि शब्दार्थ - 'परिग्गहनिविद्वाणं तेसिं वेरं पवड्ढइ - परिग्रहनिविष्टानां तेषां वैरं प्रवर्द्धते' परिश्रम आसक्त रहेवावाजा या आशियेोनु अन्य आशियो સાથે વેર વધે છે. 'आरंभसंभिया कामा- आरंभसंभृताः कामाः ' ते विषय बोलुप भव। भारंभथी भरेला छे. 'ते न दुक्ख विमोयगा' - ते न दुक्ख विमोचकाः' તેથી તે દુઃખરૂપ આઠ પ્રકારના કર્માથી છેડાવવાવાળા નથી. ૫૩શા અન્વયા જે પરિગ્રહમાં આસક્ત હોય છે, તેએાના વેરના વધારાજ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૩

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