Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 19
________________ 10] ऐतिहासिक स्त्रियाँ और अंतमें लजित हो ज्यों के त्यों अपने अपने आसन पर आ बैठे। - सब लोक अवाक् होकर रह गये। और प्रत्येक मनुष्यके हृदयमें यह भावना उत्पन्न होने लगी कि अब इस धरणीतल पर ऐसा कोई वीर नहीं, जो इस धनुषको चढायेगा। पर उन्हें यह मालुम नहीं था कि महाराज दशरथके सुपुत्र श्री रामचंद्रजी इस धनुषको चढायेंगे, और सीताके पति होंगे। जब रामचंद्रजीने देखा कि सबके बल और पौरूषकी परीक्षा हो चुकी, अर्थात् कोई भी इसे चढ़ानेको समर्थ नहीं हुआ, तब महापराक्रमी रामचंद्रजी धनुषको चढानेके लिये उद्यमी हुए और धनुषके पास गये। रामचंद्रजीके पूर्वोपार्जित पुण्योदयसे वे अग्निज्वालायें और वे सर्प एकदम विलीन हो गये। रामचंद्रजीने उस धनुषको पुष्पमालकी तरह उठा लिया और रामचंद्रजीका मुंह ताकने लगे! बस फिर क्या था? सीताने वरमाला रामचंद्रजीके गलेमें डाल दी। अनन्तर बढ़े समारोहसे श्री रामचंद्र और सीताका पाणिग्रहण हुआ! धन्य!! रामचंद्रजी और सीताजीकी विशेष बातें जब राजा दशरथकी कैकेयीके स्वयंवर समयमें स्वयंवरसे असन्तुष्ट राजगणसे भीषण युद्ध करना पड़ा था, उस समयः सर्वगुणसम्पन्न कैकेयीने दशरथको असाधारण सहायता दी थी, इसीसे महाराज दशरथने महायुद्धमें विजय लाभ किया था, और सन्तुष्ट होकर कैकेयीको वरदान दिया था। कैकेयीने उस वरको उस समय न लेकर धरोहर रखनेकी प्रार्थना की और महाराजने उसे स्वीकार किया। जब महाराज दशरथको राज्य

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