Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 46
________________ श्रीमती मैनासुन्दरी [37 लगे। स्वामीको जिन दीक्षा लेते देख, रानी मैनासुन्दरीने भी जिन दीक्षा लेकर अपना परमार्थ सुधारनेमें मन लगाया। थोड़े ही दिनोंमें राजा श्रीपाल अपने कर्म-शत्रुओंको जीत केवलज्ञान प्राप्त कर अनन्त-अविनाशी परम सिद्धपदके अधिकारी हुए, जहां सदा असीम आनन्द रहता है। मैनासुन्दरी भी सबसे उत्कृष्ट 16 वें स्वर्गकी अधिकारिणी हुई। ___"नारिनको पतिदेव, वेद सब यही बखाने। ब्रह्मा, विष्णु, महेश नारि पतिहीको जाने॥" सब देव यही कहते हैं कि स्त्रियोंके लिये आराध्य देव पति ही है। पतिहीको वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश जानती है। आचार्योने पतिभक्तिके विषयमें कहा है'पतिप्राणा हि योषिताः।' अर्थात् नारियोंके प्राण पति ही हैं। यही कारण है कि मैना जैसी सुन्दरीने कोसों तक दुर्गंध फैलनेवाले कुष्ट रोगसे पीड़ित श्रीपालके प्राणोंकी तरह रक्षा की। शोक और खेदका विषय है कि आज यह बातें केवल इतिहासकी कथा मात्र रह गई है। संसारमें पति और पत्नी विद्यमान है। पर पति पत्नीका यह भाव नहीं है वह मेल मिलाप नहीं हैं। अगर है तो पारस्परिक कलह और ईर्ष्या! इस दुर्घट समयमें समाजकी रक्षा परमात्मा ही करें। ___पाठक और पाठिकागण! इस चरित्र में आपने अच्छी तरह देख लिया होगा कि स्वार्थके वश होकर माता और पिता भी अपनी प्रिय सन्तानके साथ कितना अनिष्ट और कैसे२ निन्द्य दुष्कर्म कर सकते हैं। जब स्वयं जनककी यह दशा है तो अन्य जन अन्य जनोंकी सन्तानके प्रति, जो अन्याय और अत्याचार करें उसकी कोई गणना नहीं की जा सकती है। यह उदाहरण आजकलका नहीं किंतु आजसे कई हजार वर्ष पहिलेका है। इससे इस बातका भी पता लगता है कि

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