Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 57
________________ 48] ऐतिहासिक स्त्रियाँ इस तरह सिर्फ स्वामीके नामका स्मरण करते हुए उस सर्वांग सुन्दरी सतीको 22 साल हो गये। शरीर चिंतासे कृश होते२ बिलकुल मुरझा गया। इस दुःखरूपी समुद्रको पार करना सुन्दरी के लिये असम्भव हो गया और वह निराश होकर अपने जीवन सूर्यको अस्ताचल पर पहुंचा समझ चुकी थी कि यकायक अपने पूर्वकृत पुण्य कार्योके प्रतापसे उसके सौभाग्यका सूर्य चमक उठा, जिसका वृत्तान्त नीचे दिया जाता है : महाराज प्रह्लादकी राजसभामें लंकेश्वर-रावणका दूत वरुण के साथ युद्ध करनेमें सहायता देनेके लिये रण निमंत्रण लेकर आया, महाराजने उसे सहर्ष अंगीकार किया और उसी समय फौजी तैयारीकी आज्ञा दे दी। कुमारीकी युवावस्था थी। युद्धकी घोषणा सुनकर उनका तेज उमड़ पड़ा। शीघ्र पिताकी सेवामें उपस्थित होकर निवेदन किया कि इस कार्यके लिए आप क्यों तकलीफ करते हैं? मुझे युद्धमें जानेकी आज्ञा दीजिये। आपके आशीर्वादसे मैं शीघ्र विजयलक्ष्मी प्राप्तकर आपके दर्शन करूंगा। पिताने पुत्रको युद्धोचित शिक्षायें देकर युद्धस्थलमें जानेकी आज्ञा दी। कुमार भी रणके वस्त्र पहन अस्त्र शस्त्रोसे सज्जित होकर एक उत्तम घोड़े पर सवार हुए और कूचका शब्द कर महलसे बाहर होना ही चाहते थे कि उन्होंने परम साध्वी सुशीला सती अञ्जनासुन्दरीको दरवाजे पर खड़ी दर्शनोंकी प्रतीक्षामें देखा। कुमारको यह कार्य अच्छा नहीं मालुम हुआ और सुन्दरीकी विनय पर कुछ ध्यान न देते हुए वे अपनी सेनामें चले गये। सुन्दरीके हृदय पर दुःखोंका पहाड़ टूट पड़ा। जिस स्वामीके कुशल समाचारों पर ही वह जीवन धारण किये हुए थी आज

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