Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 61
________________ 52] ऐतिहासिक स्त्रियाँ __ यहां जब वायुकुमार विजयलक्ष्मीका मुकुट पहने हुए अपनी प्यारी अञ्जनासुन्दरीसे शीघ्र जाकर मिलनेकी इच्छा किये हुए आदित्यपुरमें आये और नगर निवासियोंसे अपनी प्यारीको कलंकित होकर माता-पिताके यहां जाना सुना तो शीघ्र दुःखित होकर महेंद्रपुरका रास्ता लिया, परंतु जब वहां भी उसके दर्शन नहीं हुए तो अति ही खेदित होकर जंगलोंमें अपनी प्यारीकी खोज करते हुए उन्मत्तकी नाई फिरने लगे। यह हाल जब राजा प्रह्लाद व महेन्दुको ज्ञात हुआ तो उनको भी बहुत दुःख हुआ। दोनों ओरसे चारों तरफ सुन्दरी तथा वायुकुमारकी खोजमें दूत भेजे गये। एक दूत हनूरुह द्वीपमें राजा प्रतिसूर्यके पास भी पहुंचा और कुमारका सब हाल जब अंजनाको मालूम हुआ तो वह दुःखित होकर मूर्छित हो गई। प्रतिसूर्य उसको समझाकर आदित्यपुर आये तथा प्रल्हादको भी समझाकर दोनों कुमारकी खोजमें निकले, बहुत जंगलों व शहरोंकी खोजके पश्चात् एक महांधकारसे परिपूर्ण भयानक जंगलमें दोनों राजाओंने वायुकुमार को, जिनके शरीरमें सिवा पंजरके कुछ भी नहीं रह गया हैं, ध्यानमें मग्न हुए बैठे देखा। अञ्जनासुन्दरीसे मिलनेका तथा तेजस्वी पुत्ररत्नके उत्पन्न होनेका समाचार कह सुनाया। यह समाचार सुनकर कुमार एकदम प्यारी! प्यारी!! प्यारी!!! कहके चिल्ला उठे। तब ध्यान टूटा तो सामने पिता आदि मान्य जनोंको देखकर लज्जावश मस्तक झुकाके रह गये। उस निर्जन जंगलमें सब लोग शीघ्र ही हनुरुह द्वीप विदा हुए। वहां वायुकुमारकी प्यारी पवित्रता अर्धांगिनी अंजनासुन्दरीसे भेंट हुई। दोनोंने परस्पर अपने दुःखोको कहकर अपने अपने

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