Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 73
________________ 64] ऐतिहासिक स्त्रियाँ दृढ़वती८-श्रीमती रानी रयनमंजूषा रानी रयनमंजूषा हंसद्वीपके सम्राट कनककेतुकी कन्या थीं। इनके चित्र विचित्र नामक दो भाई थे। राजकुमारी रयनमंजूषाका बाल्यावस्थाका सोन्दर्य अपूर्व था। छोटी ही अवस्थासे इनके पठन-पाठनका योग्य प्रबन्ध किया गया जिससे थोडे ही दिनोंमें यह स्त्रियोचित शिक्षासे परिपूर्ण हो गई तथा अपनी बुद्धि और गुणोंसे पिता माताके चित्तमें असीम आल्हाद उत्पन्न करने लगीं। कुमारीकी यौवनावस्था समीप आई देख राजाको इनके पाणिग्रहणकी चिंता हुई। एक दिन राजा कनककेतु अद्वितीय गुणोंसे विभूषित भविष्यद् वक्ता जैन मुनिके दर्शनोंको गये और उन्होंने पुत्रीके पाणिग्रहणके विषयमें भी प्रश्न किया। विलक्षण योगी मुनि महाराजने कहा कि आपकी राजधानीमें सहस्रकूट नामका देवालय है उसके किवाड़ अत्यन्त भयंकर और मजबूत है, महापराक्रमी योद्धाके सिवा उन्हें कोई खोल नहीं सकता है। जो वीर पुरुष उनको खोलेगा वही रयनमंजूषाका पाणिग्रहण करेगा। राजधानीमें आकर राजाने सहस्रकूट देवालय पर पहरा बैठा दिया और आज्ञा दी कि जो व्यक्ति इसके किवाडोंको खोले, तुरंत हमको उसका समाचार दिया जावे। ____ सुप्रसिद्ध चम्पापुरीका राजा श्रीपालको, जो कुष्टरोगसे पीडित हो अपनी राजधानीसे निकल जंगल जंगल फिरता था, पुण्योदयसे अचानक उसी सती साध्वी महापतिव्रता राजकुमारी मैनासुन्दरी समान पत्नीकी प्राप्ति हुई, जिसके उद्योगसे उसका शरीर कुष्ट रोगसे निवृत्त होकर बहुत सुन्दर हो गया। अपनी

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