Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 71
________________ 62] ऐतिहासिक स्त्रियाँ याद आयी और उन्होंने मौके पर स्वतः जाकर नगरका कुछ स्त्रियोंका क्रमशः दरवाजे पर चरणस्पर्श करते हुए चले जानेकी आज्ञा दी। नगरकी छोटीसे छोटी स्त्रीसे लगाकर राजमहिषी तकके चरणोंका स्पर्श दरवाजेसे हो गया परंतु दरवाजा नहीं खुला। तब तक सब भेद समझ कर राजाने आकर मनोरमादेवीकी शरणमें सब समाचार कहकर प्रार्थना की कि हे नारीकुलरत्न महा पतिव्रता मनोरमा! चलकर अपने चरणकमलोंके स्पर्शसे दरवाजेको खोलो और अपनी कीर्तिरूपी विजयवैजयन्तीको सारे भूमण्डलमें उड़ाकर स्त्रियोंकी लाज रक्खो। मनोरमासुन्दरी दरवाजे पर गई और परमात्माका ध्यान रखकर दरवाजेसे चरणस्पर्श किया कि उसी समय मेघकी सी गडगडाहट करता हुआ दरवाजा खुल गया। मनोरमादेवीके पतिव्रतकी कीर्तिकौमुदी सारी दुनियामें फैल गई, जिसे आज कई हजार वर्षोके व्यतीत होने पर भी हम लोग सुनकर अपनेको कृतार्थ समझते हैं तथा उस सरला साध्वी जगतपूज्या महिला कुलकमलचूडामणि मनोरमादेवीकी सहस्त्र मुखसे मुक्तकष्ठ होकर वारम्वार प्रशंसा करते हैं। ___ मनोरमादेवी अपने राजप्रासादोंको भी नीचे दिखानेवाले गगनचुम्बी महलोंमें आकर आनन्दसे पतिसेवामें मग्न हुई। दोनों दाम्पतिने फिर सुखसे संसारयात्राको पूर्णकर हमको अपना आदर्श बतलाकर अनन्तधामका मार्ग लिया। धर्मकी महिमासे कठिनतर कार्य भी सुलभ हो जाते हैं। अंतमें धर्महीकी जय होती है। धर्मके प्रभावसे मनोरमाने शीलकी साड़ी पुन: धारण की और व्यर्थ अपवाद लगानेवालोंका मस्तक नीचा किया।

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