Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 55
________________ 46] ऐतिहासिक स्त्रियाँ साधु चरित्र ६-रानी अंजनासुन्दरी "सहन शीलताकी प्रतिमूर्ति, धन्य धन्य तुम। पतिव्रता सतियोंमें 'उज्जनि,' अग्रगण्य तुम॥ बाइस वत्सर पति विछोहका, कष्ट सहन कर। धन्य निवाहा पतिव्रत, पावन अति सुन्दर // " रानी अञ्जनासुन्दरी महेन्दुपुर (दक्षिण हिन्दुस्थान) के राजा महेंदु और रानी हृदयवेगाकी परमप्यारी पुत्री थी। पद्मपुराणमें लिखा है कि-बाल्यावस्थामें इनको अन्य सब विषयोंकी शिक्षाओंके अतिरिक्त गांधर्वकला तथा धर्मशास्त्रकी शिक्षा पूर्ण रीतिसे दी गई थी। योग्य युवावस्था होनेपर पिता माताने इनका विवाह आदित्यपुरके राजा पह्लाद और रानी केतुमतीसे उत्पन्न वायुकुमार (पवनकुमार) से करना निश्चय किया। कुमारने अपनी भावी प्रियतमाके रूप गुण और शिक्षाकी प्रशंसा सुनकर गुप्त रीतिसे उससे मिलनेकी इच्छा की, तथा वे शीघ्र अपने एक मित्रके साथ वायुयान द्वारा आदित्यपुरसे महेंदुपुरको रवाना हुए। महेंदुपुर पहुंच अञ्जनासुन्दरीके महलके सप्तम खण्डपर-जहां कि सुन्दरी अपनी सखियों सहित बैठी मनोरंजन कर रही थी-जाकर छिप रहे तथा उस मण्डलीकी गुप्त वार्ता सुनने लगे। समय भी वही था, इसलिए सखियां सुन्दरीकी शादीपर अपने अपने विचार प्रकट कर रही थीं। अभाग्यवशात् एक उनकी अदूरदर्शी सखीने-जो कि सिर्फ रूपपर न्यौछावर होकर कुमारीकी शादी किसी अन्य कुमारके

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