________________ वीर नारी रानी द्रौपदी [45 इधर पाण्डवोंने देखा कि द्रौपदीका हरण हो गया। इस घटनासे सारे राज्यमें शोक मच गया। अर्जुन महाराज पत्नी वियोगसे अति दुःखीत हो गये, परंतु फिर साहसकर पांचों भाई खोजने निकले। अनेक युक्तिओसे काम लेते२ तथा उन्हीं नारद महाराजकी उलटी दया दृष्टिसे द्रौपदीका पता लग गया। वहां सुरकंकापुरीमें जाकर खूब रण हुआ और अंतमें पद्मनाभको हरा, जिन मंदिरस्थ द्रौपदीको लेकर घर आ गये। ___अब फिर द्रौपदीजीके दिन आमोद प्रमोदमें व्यतित होने लगे। कई पुत्र-रत्न उत्पन्न हुए और परम नीति मार्गसे सांसारिक सुख भोगने लगीं। बहुत दिन इस अवस्थामें बीते। एक दिन श्री नेमीनाथ स्वामीका समवशरण धर्मोपदेश करता हुआ आया। वहां जाकर पाण्डवोंने धर्मोपदेश तथा अपनी भवान्तरी सुनी, जिससे पांचो भाई परम वैराग्य रसमें डूब गये और भगवान् नेमिप्रभुके सामने समस्त गृह जंजालसे छोड़ वीतरागी दिगम्बरी दीक्षा धारणकर आत्महित करने लगे। पतिकी यह अवस्था देख द्रौपदी रानीने भी श्री राजुलमती आर्जिकाके निकट जा दीक्षा धारण करली, और परम उग्र तप करने लगी। अहा! जो शरीर परमोत्कृष्ट भोगोंसे रमा था, वही आज आत्मध्यानके रसमें पगा, उग्रोग्र तप कर रहा है। कुछ दिन तप जप करके अंतमें समाधिमरण कर श्रीमती द्रौपदीदेवी सोलहवें स्वर्गमें देवी हुई और वहांसे चयकर क्रमशः मोक्षकी पात्र होंगी।