Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 48
________________ वीर नारी रानी द्रौपदी [39 "महाराज! मैंने भविष्यवक्तासे पूछा था कि मेरी कन्याका वर कौन होगा? उन्होंने कहा था कि वह राजकुमार द्रौपदीका वर होगा, जो इस गांडीव धनुषको चढ़ावेगा, वही व्यक्ति तेरी सुताका स्वामि भी होगा।" ऐसा कह और गांडीव धनुष्य तथा अपनी कन्याको वहां रख विद्याधर अपने निवास स्थानको रवाना हो गया। इधर राजा द्रुपदने भी यह बात पसन्द की। गांडीव धनुष्य बड़ा भारी और बडा तेजवाला धनुष्य था, उसको उठा लेना सहज न था, बड़े पराक्रमी शूरवीर भाग्यशालीका कार्य था। इसलिये परीक्षा करके ऐसे ही वरको द्रौपदीको देना उचिर समझ राजा बहुत प्रसन्न हुआ। शुभ मिती पर स्वयंवरकी रचना की गई और देश देशके राजकुमारको निमंत्रण भेजा गया। ___ श्री द्रौपदीजीकी प्रशंसा सर्वत्र इतनी फैल रही थी कि निमंत्रण पाते ही चारों तरफसे बड़े राजपुत्र दौड़े चले आये, कोई उच्च राजपुत्र ऐसा न था जो इस स्वयंवरमें न आया हो। कौरव दुर्योधनादि सौ भाई बडे ठाटबाटसे आकर स्वयंवर मंडपमें बैठे। इन्हींके चचेरे भाई राजा पांडुके पुत्र महाबली युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव ये पांचों पांडव भी छिपकर ब्राह्मणके भेषमें आकर स्वयंवर मण्डपमें एक तरफ बैठ गये। ___ संपूर्ण सभा जमने पर एक एक नृपति धनुष्यको चढानेके लिये उठे परंतु चढाना तो दूर रहा उसके तेजको न सह सहनेके कारण धनुष्यके पास भी न जा सके। राजकन्या द्रौपदी भी अपनी प्यारी सुलोचनाके साथ घूमती हुई इन नृपोंका कौतुक देख रही थी। उक्त सखी क्रमशः एक एक राजपुत्रको मय नाम पतेके बताती जाती थी और द्रौपदीजी मन ही मन सबकी जांच करती जाती थी।

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