Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 50
________________ वीर नारी रानी द्रौपदी [41 और ये दम्पत्ति गजपुरमें आकर आनंदसे रहने लगे। गजपुरका आधा राज्य इन पाण्डवोंके आधीन था, आधा कौरवोंके। द्रौपदी अर्जुनके अपूर्व आनंदसे कौरव सदा जलते रहते थे और नित्य नये उपद्रव करते रहते थे। एक समय कौरवोंके मुखिया दुर्योधनने दुष्टाभिप्रायसे जुएका खेल प्रारंभ किया और उसमें पाण्डवोंको भी शनै:२ फंसा लिया। छलबलसे बिचारे पाण्डव सब बाजी हार गये, और इस इकरार पर खेल तय हुआ कि 13 वर्षतक पाण्डव छिपे वनमें रहे, बाद आकर राज्यादि करें, अन्यथा नहीं। ___ इस समय द्रौपदी रानीको बड़ेर उपद्रवों द्वारा दुर्योधनने बहुत कष्ट पहुंचाया परंतु सती द्रौपदीने समयानुकूल सब कुछ सहकर पति आदि पाण्डवोंका साथ किया। छहों प्राणी जाकर वनमें निवास करने लगे। वहां जाकर भी दुर्योधनने युद्धादि किया। अंतमें 12 साल बीत चुकने पर जब एक साल रह गया तब इन पांचों पांडवोंने सोचा कि अब 1 वर्ष बिलकुल गुप्त रीतिसे रहकर अंतमें कुछ अपना प्रभाव किसी विदेशी राजाको दिखा कुछ यश-गौरव सम्पदा लेकर घरको जाना है। अतः सबसे सलाह की कि भेष बदलकर विराटपुरके राजा सुदर्शनके यहां नौकरी करे। द्रौपदीजी भी अपने पतिकी अनुगामिनी थीं। उन्होंने भी राजाके यहां मालिनका काम करना पसन्द किया। अर्जुनने नृत्य सिखलानेका, भीमने रसोई करनेका नकुलने घुडसालका सहदेवने गोधनका और युधिष्ठिर महाराजने पुरोहितका काम पसन्द किया। सब मिलकर राजा विराटके यहां रहने लगे और अपनेर काममें अद्भुत चतुराई दिखाने लगे। द्रौपदीजी मालिनके भेषमें रहकर बडी योग्यतासे पुष्प गूंथती थी। इनके माला हारादि सत्य सिखलानेकालनका काम कर अनुगामिनी थी

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