Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 22
________________ श्रीमती सीताजी [13 और लक्ष्मण उस समय सीताके पास नहीं थे। इसलिये रावणको अपने कार्यमें कोई भी रुकावट नहीं पड़ी। ___जब रामचंद्रने उस स्थान पर आकर देखा कि, सीता नहीं है, तो अत्यंत खिन्न और शोकातुर हुये। पश्चात् सीताको ढूंढनेके लिये उद्यत हुए। इधर अविचारी रावण सीताको लंकामें लाकर सीताकी इच्छापूर्वक, अपनी धृणित कामनाको पूरी करना चाहता था। यहां पर पाठक पाठिकाओंको यह ध्यान रहे कि रावणने किसी अवसर पर यह प्रतिज्ञा ली कि, जो स्त्री अपनी इच्छापूर्वक हमें चाहेगी उसीका में प्रणयी होऊंगा अन्यथा नही" इसी कारण, उस कामीने उस अबला पर बलात्कार नहीं किया। किंतु सीताको राजी करनेकी विविध चेष्ठा करने पर भी उनका सुमेरु जैसा मन कुछ भी नही चला। उस समय सीतासे समीप कोई सहायक नहीं था। सीताके प्राणनाथ सीताने हजारों कोसोंकी दूरी पर थे। ऐसे दुर्घट समयमें सीताको भयंकर भय बताये गये। और सहस्रो प्रलोभन दिये गये, घोर यातना और तीव्र वेदनाओंसे सीताके विचारको बदलनेकी चेष्टाएं की गई, पर सीताने अपने हृदयको पाषाणका बनाकर उन सब दुःखोंको सहन किया। सीताका पातिव्रत निर्दोष और सत्य था। इसी कारण दुःख सहनेपर भी उसने थोड़ा भी कलंक नहीं लगने दिया महासती सीताने तबतक अन्न-पानका ग्रहण नहीं किया, जबतक उसने अपने प्राणनाथ कोई समाचार नहीं पाया, महावीर हनुमान (पवनजय) ने सीताकी खोज की, और सीताको लंकामें देखा। देखकर रामचंद्रका कुशल समाचार सुनाया और आश्वासन दिया। इस समाचारको पाकर ही सीताके जी में जी आधा

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