Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ 28] ऐतिहासिक स्त्रियाँ क्योंकि उनको अपने स्वामीकी आत्माको यथेष्ट शांति देनेकी इच्छा थी। ___महाराज श्रेणिक एक दिन शामके समय शिकार खेलकर आ रहे थे उन्होंने मार्गमें एक जैन मुनिको जो नग्नमुद्रा धारण किये शांतिके स्वरूप थे, ध्यानमें लवलीन अचल खड़े हुए देखा। राजाने धर्मद्वेषसे मुनिपर अपने शिकारी कुत्ते छोड़े। परंतु मुनिके प्रभावसे वे कुत्ते द्वेषबुद्धि छोड़कर मुनिके पास जाकर बैठ गये। महाराजाको यह और भी बुरा लगा। इसलिये उन्होंने स्वयं वही पड़े हुए एक मृतक सर्पको उठाकर मुनिके गलेमें डालकर महलका रास्ता लिया। ___ चार दिन व्यतीत होनेपर रात्रिके समय जब महाराज और महारानी सुख-शय्यापर बैठे परस्पर वार्तालाप कर रहे थे, महाराजने मुनिके साथ किये हुए कार्यका वृत्तांत भी सुना दिया। महारानीको इससे बहुत कष्ट हुआ। अपनी प्राणप्यारी भार्याको सन्तापित देखकर महाराज बोले __ "क्या अब तक वह मृतक सर्प मुनिके गलेमें पड़ा रहा होगा जो इतना संताप करती हो?" महारानीने सरल वाणीसे उत्तर दिया कि जब तक कोई अन्य पुरुष उस सर्पको अलग नहीं करेगा, तब तक वे मुनि अपने उपसर्गको जानकर वहीं अचल रहेंगे। राजाको यह जानकर आश्चर्य हुआ और उसी समय थोड़ेसे सेवकों द्वारा दीपकोंका प्रकाश कसकर रानी सहित मुनिके स्थानको गये। वहां जाकर देखा तो मुनि महाराज शांत मुद्रा धारण किये उसी आसनसे विराजमान हैं, जैसे कि चार दिन पहिले थे। गलेमें उसी तरह सर्प पड़ा हुआ है जैसा कि डाला गया था। राजाके हृदयमें एकदम भक्तिका समुद्र लहरा उठा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82