________________ श्रीमती सीताजी [19 लक्ष्मणको आते देख दोनों भाई रथसे उतर पड़े और हाथ जोड़कर विनयनम्र हो रामचंद्रके चरणोंमें पड़ गये। रामचंद्रने बड़े हर्षसे आलिंगन किया और फिर दोनों भाईयोंने लक्ष्मणको नमस्कार किया और लक्ष्मणने अनेक शुभाशीर्वाद दिये। ___पश्चात् बड़े उत्सव और समारोहके साथ दोनों पुत्रोंका नगर प्रवेश हुआ और कुश युवराज पदपर अभिषिक्त किया गया। एक दिन सब मंत्रिओंने मिलकर रामचंद्रसे कहा कि महाराज जगतप्रसिद्ध महासती सीताको बुलाना चाहिए। रामचंद्रने कहा "उसके शीलमें हमें कुछ भी संदेह नहीं, पर लोकापवादी भयसे मैंने उसे छोड़ा है। कोई ऐसा उपाय करो जिससे जनापवाद छूट जाय।" सुग्रीवादिने पुण्डरीकिणी नगरीमें आकर सीताको सब वृत्तान्त सुनाया, और सीताने उसकी बातोंको स्वीकार किया तथा पुष्पक विमानमें चढ़कर सीता-संध्या समय अयोध्या नगरीमें महेन्द्र नामक एक उद्यानमे ठहरी। प्रभात होते ही रामचंद्रजी और लक्ष्मणजीने जिनेन्द्र भगवान की भक्तिभावसे पूजा की और अपने२ उचित स्थानों पर बैठ गये। थोड़ी देर बाद सीता आई और वह भी अपने उचित स्थानमें बैठ गई। रामचंद्रजीने कहा-"मैंने तुम्हें केवल जनापवाद के भयसे छोडा है। इसलिये कोई ऐसा उपाय करो जिससे सर्वसाधारणको तुम्हारी निर्दोषताकी प्रतीति हो और तुम्हारे अखण्ड पतिव्रत पर सबका विश्वास हो।" सीताने पतिके प्रस्तावको सहर्ष स्वीकार किया और कहा"अवश्य ही मैं दिव्य परीक्षा द्वारा आरोपित दोषका उद्धार करूंगी।" सीताकी आज्ञानुसार एक सुन्दर स्थानपर कुण्ड