________________ 20] ऐतिहासिक स्त्रियाँ बनवाया गया और उसमें कालागुरु, अगर, चंदन भरवाया गया और उसमें अग्नि लगाई गई। उस समयका दृश्य बहुत मनोहर और भीषण था। असंख्य नरनारी इस अपूर्व दृश्यको देखनेके लिये उपस्थित थे। सभीके हृदयमें नाना भांति विचार उत्पन्न होने लगे। यह सब हो रहा था कि इतने ही में सीताने गंभीर स्वरसे कहा-- मनसि वचसि काये जागरे स्वप्नमार्गे, मम यदि पतिभावो राधवादन्यपुंसि। तदिह दह शरीर पावके मामकेदम्। सुकृतविकृतनीतिर्देव साक्षी त्वमेव // अर्थात्-“हे उपस्थित महानुभावो! ध्यानसे सुनो। यदि मैंने रामचंद्रको छोड़कर अन्य पुरुषकी मन, वचन, कायसे स्वप्न में भी कामना की हो तो यह मेरा शरीर इस प्रचण्ड अग्निमें भस्म हो जाय।" ऐसी प्रतिज्ञा कर श्री सीता उस धधकती हुई प्रचण्ड अग्निज्वालामें निःशंक हो कूद पड़ी। इसी अवसर पर इन्द्रादिक देव किसी कार्यको जा रहे थे, मार्गमें जब इस घटना-स्थलपर आये तो सीताकों अति पवित्र सती जानकर इन्द्रने शीलव्रतकी प्रभावनाके लिये "मेघकेतु" नामा देवको यहां नियुक्त किया, और वह देव वहां पर आ गया। सीताने प्रवेश किया ही था कि दर्शकगणोंका-हा जानकी। हा सीते!! ऐसा हाहाकार मच गया और महान कोलाहल होने लगा। रामचंद्र मूर्छित हो गये, लक्ष्मण विह्वल हो गये और दोनों पुत्र भी अतिशय खिन्न हो गये।