Book Title: Adhyatma Amrut Author(s): Gyanand Swami Publisher: Bramhanand Ashram View full book textPage 5
________________ जय-जयमाल श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने जंगल में रहकर आत्म स्वभाव का अमृत रस बरसाया है। सद्गुरू तो धर्म के स्तम्भ थे, जिन्होंने सत्य धर्म को जीवन्त रखने के लिए कितने उपसर्ग सहन किये । परम सत्य स्वरूप श्री भगवान महावीर स्वामी की दिव्य देशना को अक्षुण्ण रूप से जीवन्त रखा, धर्म के नाम पर होने वाले बाह्य आडम्बर को सामने खोलकर रख दिया, गुरूदेव की वाणी में तो केवलज्ञान की झंकार गूंजती है, उन्होंने महान अध्यात्म वाद के चौदह ग्रंथों की रचना कर बहुत जीवों पर महान उपकार किया है। वर्तमान में पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने इन चौदह ग्रंथों की जयमाल लिखकर इन ग्रंथों का हार्द खोल दिया है तथा पूज्य आचार्य श्री कुन्द कुन्द के परमागम एवं अन्य जयमाल भजन लिखकर हम जीवों पर महान उपकार किया है। आज तारण पंथ की जो प्रभावना हो रही है इसका श्रेय पूज्य श्री अध्यात्म रत्न बाल ब्र. श्री बसन्त जी महाराज को है, जिन्होंने हम जैसे जीवों को धर्म मार्ग पर लगाया तथा श्री संघ के माध्यम से पूरे देश में अध्यात्मवाद का शंखनाद हो रहा है । सामाजिक संगठन, धार्मिक आयोजन, जीवों का जागरण सत्य धर्म को समझने का अनुष्ठान चल रहा है। हमारे सामने जगह-जगह प्रश्न आते हैं, उनका समाधान निष्पक्ष भाव से समझने का प्रयास करें, स्वयं भी सत्य धर्म को समझें, अपनी श्रद्धा को दृढ़ रखें एवं सभी धर्म बन्धुओं को इसका यथार्थ बोध करायें। १.प्रश्न-ॐनमः सिद्ध और ॐ नमः सिद्धेभ्य: में क्या अन्तर है और इसका अर्थ क्या है? समाधान- ॐ नमः सिद्धेभ्यः, सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार हो। ॐ नम: सिद्धं - सिद्ध स्वरूप को नमस्कार हो। "सिद्धेभ्यः" बहुवचन है इसमें सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार है, जो श्रद्धा की अपेक्षा पुण्य बन्ध का कारण है, दृष्टि की अपेक्षा परोन्मुखी दृष्टि है। "सिद्धं" एकवचन है इससे सिद्ध स्वरूप को नमस्कार होता है, इसमें श्रद्धा अपेक्षा सिद्ध परमात्मा भी आ गये और अपना सिद्ध स्वरूप भी आ गया तथा दृष्टिकी अपेक्षा स्वोन्मुखी दृष्टि है, जो सम्यग्दर्शन धर्म का हेतु है। श्री गुरू महाराज का यह सिद्ध मंत्र है जो कई ग्रंथों में दिया गया है। २. प्रश्न- जय तारण तरण का क्या अर्थ है? समाधान- तारण तरण एक सार्वभौम शब्द है, जिसमें जिनेन्द्र परमात्मा और सभी भगवन्त आ जाते हैं, क्योंकि यह सब तारण तरण कहलाते हैं। वीतरागी सद्गुरू साधु भी तारण तरण होते हैं, धर्म भी तारण तरण होता है और निज आत्मा भी तारण तरण है। जय तारण तरण में सबका अभिवादन हो जाता है। विशेषहाथ जोड़कर सबको जय तारण तरण कहें, जय जिनेन्द्र कहें, जय राम जी कहें, नमस्कार कहें- प्रयोजन हमारा सबसे प्रेम मैत्री भाव हो, कषाय की मन्दता हो। ३. प्रश्न- तारण पंथ में देव दर्शन का क्या विधान है? समाधान - अध्यात्म में निश्चय से निज शुद्धात्मा ही देव होता है, जो इस देहालय में विराजमान है। तारण पंथी आंख बन्द करके अपने शुद्धात्म देव का दर्शन करता है और देव के स्वरूप को बताने वाली जिनवाणी को नमन करता है। ४. प्रश्न- आरती, प्रसाद, चन्दन का क्या प्रयोजन है? समाधान - आरती - श्रद्धा, बहुमान और भक्ति का प्रतीक है। प्रसाद - चार दान की प्रभावना स्वरूप है क्योंकि प्रसाद के साथ व्रत भण्डार भी दिया जाता है । चन्दन - अपनी मान्यता, परम्परा और सौभाग्य का सूचक है, धर्मात्मा की पहिचान कराता है। विशेष-यह सामाजिक व्यवस्था है इससे धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है, परंतु ग्रहस्थ के षट्आवश्यक में आता है। ५. प्रश्न - तारण पंथ का मूल आचार क्या है? समाधान- सात व्यसन का त्याग और अठारह क्रियाओं का पालन करना। सात व्यसन - जुआं खेलना, मांस खाना, शराब पीना, चोरी करना, शिकार खेलना, परस्त्री गमन, वेश्या रमण इनका त्याग करना आवश्यक है। अठारह क्रिया - १ - धर्म की श्रद्धा, २- अष्ट मूल गुण का पालन, ३-चार दान देना, ४-रत्नत्रय की साधना, ५- रात्रि भोजन का त्याग,६-पानी छान कर पीना। ६. प्रश्न- आप लोगों ने व्रत संयम प्रतिमा की दीक्षा ले ली, आपको सम्यग्दर्शन हुआ या नहीं ? क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना VII VIIIPage Navigation
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