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१७)
[अध्यात्म अमृत
जयमाल
ध्रुव धाम में डटे रहो बस, इसमें ही अब सार है। पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है ।
८. श्री चौबीस ठाणा
जयमाल
मिथ्यात्व अविरत प्रमाद कषाय यह,जीव अजीव के न्यारे हैं। कर्मरूप पुद्गल परमाणु, भाव अज्ञानी के सारे हैं । भेदज्ञान से भिन्न जानना, द्वादशांग का सार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है ।
१. ध्रुव तत्व शुद्धातम हो तुम, परमानन्द परमातम हो ।
जिनवाणी मां जगा रही है, जागो खुद शुद्धातम हो । थक गये हो संसार भ्रमण से, यदि मुक्ति को पाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ।।
निमित्त नैमित्तिक संबंध दोनों का, बना हुआ संसार है । इसी बात का ज्ञान कराने, निश्चय व व्यवहार है ।। एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि, अनेकांत भव पार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है ।
गति, इन्द्रिय, काय, योग अरु, वेद, कषाय, यह ज्ञान है। संयम, दर्शन, भव्य, लेश्या, सम्यक्, सैनी, गुणस्थान है। आहारक, जीवसमास, पर्याप्ति,संज्ञा,प्राण,अरु ध्याना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ।
३.
पाप, विषय, कषाय से हटना, व्रत संयम तप कहलाता। निश्चय पूर्वक इनका पालक, मुक्ति मार्ग पर बढ़ जाता ॥ जब तक दोनों साथ न होवें, तब तक न उद्धार है। पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है ।
उपयोग आश्रव जाति कुल का, बना यह सब संसार है। चौबीस स्थानों में अनादि से, भ्रमण किया कई बार है । मानुष भव सौभाग्य जगा यह, अब नहीं धोखा खाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ।
४.
१०. महावीर का मार्ग यही है, वीतराग बनने वाला ।
तारण पंथी वही कहाता, जो इस पर चलने वाला ।। ज्ञानानंद चलो अब जल्दी, अब क्यों देर दार है । पाप विषय कषाय से हटना, यही त्रिभंगी सार है ।
चहुँगति में पंच इन्द्रिय बनकर, नाना दु:ख उठाये हैं। एक स्वांस में अठदश वारा, जन्म-मरण दु:ख पाये हैं। स्थावर काय पृथ्वी जल वायु, अग्नि वनस्पति नाना हैं। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ।
(दोहा) त्रिभंगी संसार के, जन्म-मरण के मूल | रत्नत्रय को धार लो, मिट जाये सब भूल ।। भाव शुभाशुभ जीव को, भरमाते संसार । शुद्ध स्वभाव की साधना, करती भव से पार ।।
नरक तिर्यंच मनुष देवायु, जन्म मरे अनादि हो । निज स्वरूप सत्ता को भूले, भटक रहे जग वादि है । सद्गुरू तारण तरण जगा रहे, मौका मिला महाना है। चेतो जागो अभी समझ लो, वरना चौबीसठाणा है ।
६.
सक सत्रह, आशा, स्नेह, भय, लाज लोभ अरू गारव है। आलस, प्रपंच विभ्रम जन रंजन, कल-मन रंजन गारव है।