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[अध्यात्म अमृत
ज्ञान स्वभाव में रत रहता है, रहा न भ्रम अज्ञान है । ममल पाहुड़ में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ।
पंच ज्ञान परमेष्ठी पद का वह आराधन करता है । आर्त रौद्र ध्यानों को तजकर, धर्म-शुक्ल ही धरता है ॥ विषय- कषाय पाप आदि का रहा न नाम निशान है। ममल पाहुड़ में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ।
पंचनन्द पंच पदवी से, पंचाचार पालता है । पंचज्ञान में रंजरमण कर, अभय स्वभाव चालता है । मुक्ति श्री ध्यावहु रे फूलना, अन्यानी अन्यान है । ममल पाहुड़ में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ।
चितनौटा चेतक हियरा से, जोगी जोग में रमता है। बसंत फूलना फाग फूलना, जनगन बाबला जमता है ॥ परमानंद विलासी गाता, ज्ञानानंद गुणगान है । ममल पाहुड़ में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है ॥
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१०. बीजौरो बीजारोपण कर जिनय जिनेली गाता है । पंच कल्याणक उसके होते, तारण तरण कहाता है । सर्व अर्थ की सिद्धि होती, पाता पद निर्वाण है । ममल पाहुड़ में डूबने वाला, बनता जिन भगवान है |
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मल स्वभाव की साधना, ममल पाहुड़ है नाम | ज्ञानी साधक संत को मिलता निज ध्रुवधाम || तारण स्वामी महाकवि, संगीतज्ञ महान । शुद्ध अध्यात्म के फूलना, दिये जगत को दान ||
जयमाल ]
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१०. श्री खातिका विशेष
जयमाल
सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण ही, मोक्षमार्ग कहलाता है । बिन सम्यक्त के जीव आत्मा, जग में चक्कर खाता है । द्रव्य क्षेत्र काल भाव भव बन्धन, ये ही जगत ठिकाना है। धर्म-कर्म का मर्म गुरू ने खातिका विशेष बखाना है ॥
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सम्यग्दर्शन सहित जीव जो निश्चय मुक्ति पायेंगे । सम्यग्दर्शन हुये बिना तो जग में ही भरमायेंगे || जीव-अजीव का भेद ज्ञान ही, भव दुःख से छूट जाना है। धर्म-कर्म का मर्म गुरू ने खातिका विशेष बखाना है ॥
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जो जन्मा है अवश्य करेगा, ही जगत विधान है । मर करके जो जन्म न लेता, वह बनता भगवान है | अपने को अब कहाँ जाना है, इसका पता लगाना है। धर्म-कर्म का मर्म गुरू ने खातिका विशेष बखाना है ॥
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सम्यग्दर्शन बिन व्रत संयम, देवगति के कारण हैं । भवनत्रिक में जन्म वह लेता, बतलाते गुरू तारण हैं । भूत-पिशाच गन्धर्व वह होता, गाता फिरता गाना है। धर्म-कर्म का मर्म गुरू ने खातिका विशेष बखाना है ॥
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नरभव यह पुरूषार्थ योनि है, अब सम्यक् पुरुषार्थ करो । भेदज्ञान तत्व निर्णय करके, साधु पद महाव्रत धरो ॥ चूक गये यदि इस जीवन में, तो फिर चक्कर खाना है। धर्म-कर्म का मर्म गुरू ने खातिका विशेष बखाना है ॥
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इस संसार महावन भीतर, छह कालों का घेरा है । उत्सर्पिणी अवसर्पिणी भेद से, बीस कोड़ाकोड़ी फेरा है ।
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