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[अध्यात्म अमृत
आध्यात्मिक भजन]
भजन-१७ तुमको जगा रहे गुरू तारण, अब तो होश में आओ जी॥ १. कर श्रद्धान धरो उर दृढ़ता, मत भरमाओ जी ।
तुम तो अरूपीजीव तत्व हो,ममल स्वभाओजी..तुमको... २. धन शरीर में राचि रहे हो, दुर्गति जाओ जी ।
साधु बन कर करो साधना,शुद्धातम ध्याओ जी..तुमको... ३. चारों गति में फिरे भटकते, दु:ख ही पाओ जी।
अपनी सुरत कभी नहीं आई,सबने समझायोजी..तुमको... देख लो अपनो कोई नहीं है, काये मोह बढ़ाओ जी। ज्ञानानंद जगो अब जल्दी,मत समय गंवाओ जी..तुमको...
भजन-१९ अरे आतम वैरागी बन जइयो..... अरे...॥ १. कोरे ज्ञान से कछु नहीं होने । दुर्लभ जीवन वृथा नहीं खोने ॥
शुद्ध स्वरूप में रम जइयो ... अरे..... २. देख लो अपनो कछु नहीं भैया । मोह में कर रहे हा हा दैया ॥
कछु तो दृढ़ता धर लइयो ... अरे..... ३. धन परिवार में कब तक मर हो । पाप कषायों में कब तक जर हो ॥
ब्रह्मचर्य प्रतिमा धर लइयो... अरे..... ४. घर में पूरो कबहुं नहीं पड़ने । मोह राग में कुढ़ कुढ़ मरने ॥
ज्ञानानंद वन चल दइयो... अरे.....
भजन -२०
भजन - १८ अरी जो आत्मा जग जाओ आत्मा।
उठ चेत संभल अब ध्याओ आत्मा ॥ १. देख लो अपनो कोई नहीं है, पर द्रव्यों से भिन्न कही है।
मोह में मत भरमाओ आत्मा... उठ.... २.तू तो है चेतन शुद्ध स्वरूपी,एक अखंड अरस और अरूपी ।
ज्ञानानंद स्वभाव आत्मा... उठ.... ३. अपने को देखो यही शुद्ध दृष्टि,इससे ही होगी तुम्हारी मुक्ति ।
कर्मों के बंध बिलाओ आत्मा... उठ.... ४. अपने को देखो रहो भेदज्ञानी, कर्मों की होगी अनंती हानि ।
मोक्ष परम पद पाओ आत्मा ... उठ.... ५. लीन रहो तुम बनो वीतरागी, फैली है बाहर राग की आगी।
जलने से अब बच जाओ आत्मा... उठ.... ६. मौका मिलो है करो पुरूषार्थ,छोड़ो यह सब ध्यान रौद्र और आर्त।
अपने में अब रम जाओ आत्मा... उठ.... ७.छोड़ो यह झंझट सभी दुनियादारी, चलने की अपनी करो तैयारी।
तारण तरण बन जाओ आत्मा... उठ....
चेतन अपने भाव सम्हाल॥ १. अपने भावों का तू ही कर्ता, पर का कुछ न कर्ता धर्ता ।
अपने आपतू फंसा है जग में,बीता अनादि काल...चेतन... २. धन वैभव को अपना माने, जड़ चेतन से हो अनजाने ।
भूल रहा क्यों तू अपने को, अपना रूप संभाल...चेतन... ३. समय मिला है निज हित करले, मोही अपने भाव बदल ले। हो जाये तू मुक्त जगत से, कहते तारण तरण दयाल |
चेतन अपने भाव संभाल ....||