Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 47
________________ [अध्यात्म अमृत आध्यात्मिक भजन] [८२ ३. अब भी मान गुरू का कहना । भेदज्ञान कर सुख से रहना ॥ तारण गुरू समझाये रे ..... अब काहे..... ४. तू है जीव अरूपी चेतन । यह शरीर जड़ और अचेतन ॥ घर में मत भरमाये रे ..... अब काहे..... ५. शुद्ध स्वरूप की करो साधना । छोड़ो मोह और विषय वासना ॥ कर्मों के बंधन विलाये रे ..... अब काहे..... ६. ज्ञानानंद करो पुरूषार्थ । धर वैराग्य चलो परमार्थ ॥ सिद्ध परम पद पाये रे..... अब काहे..... भजन - २४ यह तारण तरण की वाणी, तुम बनो भेद विज्ञानी॥ १. देख लो हालत इस दुनियां की, नहीं कहीं भी सुख है। काल अनादि भटकते हो गये, सबमें दुःख ही दुःख है । सोच समझ ओ प्राणी...... तुम..... २. धन वैभव की खातिर तूने, सारी उमर गंवाई । कहो किसी के जरा काम में, यह माया है आई ॥ मत करो अब नादानी...... तुम..... ३. मात-पिता परिवार किसी के, कौन काम में आता। जीव अके ला आता जाता, वृथा मोह बढ़ाता । भुगते नरक निशानी...... तुम..... ४. इस शरीर की हालत देखो. यह भी यहीं जल जाता। इसकी खातिर पाप कमाते, मूढ बने तुम ज्ञाता ॥ छोड़ो अब मनमानी...... तुम..... तुम तो अरूपी ज्ञाता दृष्टा, अजर अमर अविनाशी। देख लो अपने शुद्धातम को, ज्ञानानंद सुख राशि ।। मिट जाये जग की कहानी ...... तुम..... भजन-२५ हंस हंस के कर्म बंधाये रे, अब काहे रोवे चेतनवा। जैसो कियो है वैसो पाये रे, अब काहे रोवे चेतनवा॥ १. पहले ही अपनी सुधि विसराई । धन शरीर में रहो भरमाई ॥ मोह करो दु:ख पाये रे..... अब काहे..... २. चारों गति में तू फिर आयो । कहीं जरा साता नहीं पायो | छूटो न अब तक छुड़ाये रे..... अब काहे..... भजन-२६ सोचो समझो रे सयाने मेरे वीर, साथ में का जाने॥ धन दौलत सब पड़ी रहेगी. यह शरीर जल जावे । स्त्री पुत्र और कुटुम्ब कबीला, कोई काम नहीं आवे... २. हाय हाय में मरे जा रहे, इक पल चैन नहीं है। ऐसो करने ऐसो होने, जइकी फिकर लगी है... ३. लोभ के कारण पाप कमा रहे, मोह राग में मर रहे। हिंसा झूठ कुशील परिग्रह, चोरी नित तुम कर रहे... ४. कहां जायेंगे क्या होवेगा, अपनी खबर नहीं है। चेतो भैया अब भी चेतो, सद्गुरूओं ने कही है... सत्संगत भगवान भजो नित, पाप परिग्रह छोड़ो। साधु बनकर करो साधना, मोह राग को तोड़ो...

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