Book Title: Adhyatma Amrut
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 50
________________ [अध्यात्म अमृत १. कान भजन-३५ नरभव मिला है विचार करो रे । आतम का अपनी उद्धार करो रे ॥ काल अनादि निगोद गंवाया । पशुगति में कोई योग न पाया ॥ नरकों के दु:खों का ध्यान धरो रे... आतम... २. मुश्किल से यह मनुष्य गति पाई । देव गति में भी सुख नाहीं ॥ वृथा न इसको बरबाद करो रे... आतम... ३. देख लो अपना क्या है जग में । भटक रहे हो क्यों भव वन में | __ मुक्ति का मार्ग स्वीकार करो रे... आतम... ४. मोह राग में मरे जा रहे । धन शरीर के चक्कर खा रहे ॥ अपना भी कुछ तो श्रद्धान करो रे...आतम... ५. जीव अजीव का भेदज्ञान करलो । संयम तप त्याग ब्रह्मचर्य धरलो ॥ ज्ञानानंद अपनी संभाल करो रे... आतम... आध्यात्मिक भजन [८८ ३. सद्गुरू की जा बात न माने, कर्मों को अपने पति जाने । काल अनादि बिहानी है....ऐ भैया.... ४. अपने घर में जरा नहीं रहती,सुनती है पर जरा नहीं कहती। विषयों में भरमानी है....ऐ भैया.... ५. शुद्ध बुद्ध है ज्ञाता दृष्टा, निराकार कर्मों की सुष्टा। ज्ञानानंद सुखदानी है....ऐ भैया.... ६. समझाने पर नहीं मानती, धर्म कर्म कुछ नहीं जानती। कर रही आनाकानी है....ऐ भैया.... भजन-३७ जग अंधियारो, धूरा को ढेर सारो, ज्ञान की ज्योति जगा लइयो। मुक्ति को मारग बना लइयो। १. जीव जुदा और पुद्गल जुदा है । अपना आपहि आतम खुदा है ॥ भेदज्ञान प्रगटा लइयो...मुक्ति ... २. जीव आत्मा सिद्ध स्वरूपी । पुद्गल शुद्ध परमाणु रूपी ॥ __ द्रव्य दृष्टि अपना लइयो...मुक्ति ... ३. जग का परिणमन क्रमबद्ध निश्चित । टाले टले न कुछ भी किन्चित् ॥ कर्ता भाव मिटा दइयो...मुक्ति... ४. पर्यायी परिणमन द्रव्य की छाया । भ्रम भ्रांति सब असत् है माया ॥ ब्रह्म ज्ञान प्रगटा लइयो...मुक्ति... आत्मानंद करो पुरूषार्थ । वीतराग बन चलो परमारथ ॥ राग में आग लगा दइयो...मुक्ति ... भजन-३६ मेरी आतम बौरानी है, ऐ भैया कोई समझा दइयो । १. पर द्रव्यों हे अपनो माने, हित अहित कछु नहीं जाने। हो रही जा मस्तानी है....ऐ भैया.... २. धन शरीर में मरी जा रही, पुद्गल के जा चक्कर खा रही। मानत नहीं दीवानी है....ऐ भैया....

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